कविता

कविता : रुदाली

लाल आंखें
बिखरे बाल
काले कपड़े
कातर आवाज
दारुण विलाप
पत्थर से बहे पानी
व्यथा यूं बखानी
दर्द…दुःख…गम
दम बेदम
विरह पीड़ा
अंतस उजड़ा
हर नयन से
नीर उमड़ा
साजन बिना सुहागिन
वैधव्य घनाघन
रोज ही तलाश
बिछे एक लाश
दर्द का स्वांग रचे
घर भर का पेट भरे
रुदाली… ओ रुदाली
तू तो मौत की घरवाली

निवेदिता श्रीवास्तव