कविता

एक टुकड़ा धूप

एक टुकड़ा धूप का ,
अगर मुझको भी मिल जाता ,
हाँ घने कोहरे में भी ,
सब साफ़ ही नजर आता |
यूँ कलियों का चमन ,
खिलने से पहले ही न मुरझाता ,
हाँ घने ………………………..
अपनों से भरी महफ़िल में ,
तनहा दिल न घबराता |
हाँ घने……………………….
न रिश्तों का कोई भी खूँ ,
सरे बाज़ार कर जाता |
हाँ घने ………………………
घुटी सी चंद साँसों का ,
सफ़र यूँ ही न थम जाता |
हाँ घने कोहरे में भी ,
सब साफ़ ही नज़र आता ||

पूनम पाठक

पूनम पाठक

मैं पूनम पाठक एक हाउस वाइफ अपने पति व् दो बेटियों के साथ इंदौर में रहती हूँ | मेरा जन्मस्थान लखनऊ है , परन्तु शिक्षा दीक्षा यही इंदौर में हुई है | देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से मैंने " मास्टर ऑफ़ कॉमर्स " ( स्नातकोत्तर ) की डिग्री प्राप्त की है | इंदौर में ही एकाउंट्स ऑफिसर के जॉब में थी | परन्तु शादी के बाद बच्चों को उचित परवरिश व् सही मार्गदर्शन देने के लिए जॉब छोड़ दी थी| अब जबकि बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं तो अपने पुराने शौक लेखन से फिर दोस्ती कर ली है | मैं कविता , कहानी , हास्य व्यंग्य आदि विधाओं में लिखती हूँ |