एक टुकड़ा धूप
एक टुकड़ा धूप का ,
अगर मुझको भी मिल जाता ,
हाँ घने कोहरे में भी ,
सब साफ़ ही नजर आता |
यूँ कलियों का चमन ,
खिलने से पहले ही न मुरझाता ,
हाँ घने ………………………..
अपनों से भरी महफ़िल में ,
तनहा दिल न घबराता |
हाँ घने……………………….
न रिश्तों का कोई भी खूँ ,
सरे बाज़ार कर जाता |
हाँ घने ………………………
घुटी सी चंद साँसों का ,
सफ़र यूँ ही न थम जाता |
हाँ घने कोहरे में भी ,
सब साफ़ ही नज़र आता ||
पूनम पाठक