आईना बोलता है
मोदी सरकार के आते ही शेयर बाज़ार की छाती ५६” क्या ५८” तक फूल गयी जब सेंसेक्स ३०००० और निफ्टी ९००० को पार कर गये। लगा कि वाकई अच्छे दिन हमारी अटरिया पर बादल की तरह मँडराने लगे हैं। हर व्यक्ति अपनी अपनी अपेक्षाओं की हवा से आकार में दुगना हो गया।
फिर हवा चली और सारे बादल जाने कहाँ उड़ गये। अब कोई छाती को भी कब तक फुलाए रखता। दम घुटने लगा तो सारी हवा निकल गयी। शेयर बाज़ार भी पिचकते पिचकते चार साल के स्तर पर पहुँच गया। सेंसेक्स २५००० और निफ्टी ७५०० के स्तर पर अपने आप को किसी तरह बनाये हुए हैं।
५६” से ५.६” हो जाने में ज़्यादा वक्त नहीं लगा है। और जो हवा निकली वो ग़रीब की थाली से दाल, सब्ज़ी उड़ा ले गयी। अर्ध अस्तित्वों (मिडिल इनकम ग्रुप) का जीना मुहाल हो गया है। तनख़्वाह उनकी बढ़यी जा रही है जो बिना तनख़्वाह भी ऐश कर सकते हैं । महँगाई है कि डायन से सुरसा हो चली है। मौसम का मिज़ाज पड़ोसी मुल्क की तरह हो गया है, कभी गोलियाँ बरसाता है तो कभी बिना शर्त बात को तैयार हो जाता है। गये ज़माने के ज़मीनदारों की तरह सरकार, कभी स्वछता तो कभी विकास की दुहाई देकर नित नये कर लगाती जा रही है।
किसान को अपनी उपज का, दस्तकार को अपने बनाये सामान का और कलाकार को अपनी कला का उचित मूल्य सिर्फ़ इसलिये नहीं मिल पाता क्योंकि सारा बाज़ार, सारा व्यापार यहाँ तक की सारी सरकार बिचौलियों के हाथ में है। ऐसे में लोग उन अभागों पर उँगलियाँ उठाते हैं जो, जीवनयापन की छोटी से छोटी समस्या से पार नहीं पा पाते तो खुदकुशी का रास्ता एख़्तियार कर लेते हैं। देश की बड़ी बड़ी और बेहद ज़रूरी समस्याओं पर नहीं, सहिष्णुता – असहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता – पंथनिरपेक्षता आदि पर बहस होती है।देश के प्रबुद्ध, आम जन जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास न कर के, नेताओं के महिमामंडन और व्यक्तित्व प्रोत्साहन में सुख पाते हैं।
जाने कब ये तमाम विडंबनाएँ समाप्त होंगी, कब इन मदारियों की चाल हम समझ पायेंगे और बंदर-बंदरिया की तरह नाचना बंद करेंगे।