राजनीति

आईना बोलता है


दिन-दहाड़े केजरिया लूट :

दिल्ली की आम आदमी सरकार के नाम से लोगों को यही लगेगा कि यह आम आदमी की सुध लेने वाली सरकार होगी। परन्तु यह कितना भ्रामक है, यह जान कर आप के होश उड़ जाएँगे।

यह सरकार हर चौथे दिन वैट या कोई दूसरा कर बढ़ा कर तेल की गिरती किमत का लाभ अपनि जेब में उसी बेशर्मी से कर रही है जिस बेशर्मी से इसने अपने विधायकों का वेतन और भत्ता तीन गुना कर दिया है । दरअसल तेल की गिरती कीमत का पूरा लाभ यह अपने विधायकों में बाँट ले रही है। वर्ना, क्या यह अजीब नहीं लगता कि एक तरफ तो तेल की कीमत गिर रही है और दूसरी तरफ दिल्ली में तेल की कीमत बढ़ रही है !

इसकी सफाई में श्री केजरीवाल जी, माफ करियेगा, माननीय श्री केजरीवाल जी ने डालर की बढ़ती कीमत का बहाना लिया है। एक छोटी सी गणितीय विवेचना आपको बता देगी कि केजरीवाल जी आम आदमी को कितने आम स्तर का बेवकूफ समझते हैं।

प्रदेश सरकार नहीं, तेल कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से तेल खरीदती हैं और रिफाइन कर के बेचती हैं। प्रदेश सरकार इन कंपनियों से वैट और बिक्रीकर के रूप में अपनी कमाई करती है जो पैसा प्रदेश के विकास में काम आता है। परन्तु इस कर के पीछे एक तर्कसंगत आर्थिक नीति होती है। यह किसी गुंडे का हफ्ता नहीं है जो मनमाने तरीके से बढ़ा दिया जाय। परन्तु केजरीवाल सरकार की कर नीति तो किसी गुंडे के हफ्ते से भी बदतर है। आइये देखते हैं कि किस तरह दिल्ली की जनता दोही जा रही है।

केजरीवाल सरकार फरवरी २०१५ में सत्ता में आयी। उस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमत ४५.९०$ प्रति बैरल थी और डालर ₹६१.३४ का था। अर्थात, तेल की कीमत ₹२८१५.५० प्रति बैरल थी ।
आज तेल की कीमत २८$ प्रति बैरल है और डालर की कीमत ₹६७.६४ है। अर्थात, तेल की कीमत ₹१८९३.९० है। पूरे ₹९२१.६० प्रति बैरल का लाभ हो रहा है। फरवरी २०१५ में दिल्ली में पेट्रोल ₹६०.४९ और डीज़ल ₹४८.५० थी। आज दिल्ली में इनकी कीमत ₹६६.९० और ₹४९.७२ प्रति लीटर है। सभी दरें औसतन ली गयी हैं।

क्या माननीय श्री केजरीवाल जी, जिन्हें आयकर विभाग में लोगों का खून चूसने का अच्छा तज़ुर्बा रहा है, कृपया आम ग़रीब जनता को बताएँगे कि वे अपनी खून चूसने की आदत कब छोड़ेंगे ? कब तक कभी जैटली पर तो कभी मोदी पर इल्ज़ाम लगा कर या इसी प्रकार की दूसरी नौटंकियाँ कर के अपनी लूट पर पर्दा डालते रहेंगे ?

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।