संस्मरण

मेरी कहानी 97

बेटीआं पिंकी और रीटा बड़ी हो रही थीं। दोनों की उम्र में एक साल का ही अंतर था लेकिन दोनों जुड़वाँ बहनें ही लगती थीं क्योंकि पिंकी अपनी माँ पर गई थी जो सरीर से सलिम है और रीटा मुझे पर गई थी क्योंकि मैं कुछ वज़नी हूँ। दोनों घर में खेलती रहतीं ,काम से वापस आ कर मेरा सारा वक्त उन के साथ ही गुज़रता। बहादर और कमल जब हमारे घर आते तो उन की बेटी किनूँ भी पिंकी रीटा के साथ खेलती तो बहुत अच्छा लगता। जब हम बहादर के घर जाते तो वहां भी यह तीनों बहुत मस्ती करतीं। मेरे बहन और बहनोई भी अब अफ्रीका से यहां आ गए थे और उन्होंने अपना घर इलफोर्ड के मौरस एवेन्यू में ले लिया था। बहन की बेटी नीलम भी पिंकी से छै हफ्ते ही बड़ी थी। जब हम इलफोर्ड जाते तो पिंकी रीटा और बहन की बिटिआ नीलम साथ साथ खेलतीं और हम उन की फोटो खींचते खुश होते रहते। इनोक पावल और सकिन(skin head) हैडों का समय बीत चुक्का था और कुछ कुछ शान्ति हो गई थी। इन्हीं दिनों मेरे दोस्त टंडन ने भी हमारी रोड पर घर ले लिया था। उस की पत्नी का नाम था तृप्ता और उन के दो बेटे राजू और दीपी थे और एक बेटी थी रेखा। हम एक दूसरे के घर जाते ही रहते थे और हमारे बच्चे बर्थडे पार्टिओं पर इकठे मज़े करते। लिखना भूल ना जाऊं टंडन 1975 में काम छोड़ कर मानचैस्टर चले गिया था और उस के बाद उन के दर्शन कभी नहीं हुए और दस बारह साल पहले पता चला था कि टंडन इस दुनिआ में नहीं रहा था। लेकिन कुछ महीने हुए कुलवंत को पता चला कि टंडन की पत्नी तृप्ता बिल्सटन जो कि हम से तीन मील दूर ही है ,वहां के किसी मंदिर में आई हुई थी ,तो कुलवंत तृप्ता को मिलने उस मंदिर में गई तो वोह अपने बेटे राजू और बेटी रेखा के साथ थी। मिल कर इतनी खुश होइँ कि अब एक दूसरे को टेलीफून करती रहती हैं और उन दिनों की यादें शेयर करती रहती है। अब तो राजू के बच्चे भी बड़े हैं लेकिन रेखा ने शादी नहीं की। आज भी कुछ घंटे पहले तृप्ता का फोन आया था और कुलवंत रेखा को हंस रही थी कि ” रेखा ! अब तू शादी करा ले भले ही कोई गोरा हो ,किसी भी जात का हो ,आज कल तो कोई विचार ही नहीं करता” ,रेखा ने जवाब दिया था ,” आंटी मुझे मेरे खियालों का साथी मिलता ही नहीं “. ऐसे वोह हंस रही थी।

वक्त आगे जा रहा था और 1971 में कुलवंत को फिर बच्चा होने वाला था। कुलवंत को मैं हंसाता रहता और कहता ,” इस दफा तुम्हारे मन की आशा जरूर पूरी होगी क्योंकि इस दफा बेबी सतम्बर में आएगा जो पिंकी रीटा के जनम से पांच महीने बाद होगा, यानी अब की बार जनम की डेट उल्ट है और जरूर बेटा ही होगा ” .मैं उस का हौसला बढ़ाता ,मैं नहीं चाहता था कि वोह कोई चिंता करे और इस का असर उस की सिहत पर पड़े. यों तो मैं उस को कहता रहता था कि मुझे कोई फरक नहीं था लेकिन दिल से तो मैं भी यही चाहता था कि इस दफा बेटा ही हो क्योंकि मिक्स फैमिली बहुत अच्छी लगती है । अगर मैं कहूँ कि मुझे बेटा नहीं चाहिए था तो मैं झूठ बोलूंगा क्योंकि फिर भी मैं हूँ तो भारती ही। बेटी होने पर मैं तो फिर भी सह लेता कि बेटी हो गई है तो कोई बात नहीं लेकिन कुलवंत को तस्सली मैं कैसे देता ,बस यही फ़िक्र मेरे मन में रहता था। कुलवंत को मैं मनघडत कहानीआं सुनाता रहता था ताकि उस का हौसला बुलंद रहे। वैसे मुझे यकीन था कि इस दफा बेटा ही होगा क्योंकि इस दफा मैं कुलवंत में अजीब तबदीली देख रहा था। दोनों बेटिओं की गर्व अवस्था के दौरान कुलवंत को उल्टीआं बहुत लगीं थीं लेकिन इस दफा वोह बिलकुल सिहतमंद थी ,कोई उलटी नहीं आई थी। और एक दिन तो अचंभा ही हुआ ,रात के वक्त हम सोये हुए थे कि सुबह तीन चार वजे कुलवंत एक दम घबरा कर बैड से उठी और बोलने लगी ,” मैंने गुट्टी वाला मुंडा देखा है जो यहां बैठा था “. मैंने कहा ,सो जा सो जा ,कुछ नहीं है। वोह फिर लेट गई लेकिन इस बात को मैंने दिल में सहेज कर रख लिया ,मुझे सौ प्रतिशत विशवास हो गिया था कि इस दफा बेटा ही होगा।

दिन बीतते जा रहे थे ,पता ही नहीं चला, 26 सतंबर 1972 की रात को कुलवंत को महसूस होने लगा कि अब वोह फैसलाकुन घड़ी आ गई थी। रात को लेबर पेन्ज़ शुरू हो गई और रात के एक वजे कुलवंत ने कहा ,” जी ,हस्पताल को टेलीफून कर दो “. मैं भाग कर टेलीफून बूथ को गिया और टेलीफून कर दिया। थोह्ड़ी देर बाद ही एम्बुलैंस आ गई ,सारे कपडे बैग में पहले ही डाल कर रखे हुए थे। जब कुलवंत एम्बूलैंस में बैठने लगी तो बुधवार का दिन चढ़ गिया था। मैंने कुलवंत का माथा चूमा और मेरे मुंह से निकला , ” अब जाओ ,बुध काम शुद्ध ही होगा “. कुलवंत चली गई लेकिन मुझे नींद आ नहीं रही थी ,दोनों बेटीआं एक बैड में सोई हुई थी ,उन के चेहरे देखता ,तरह तरह के विचार मन में आ रहे थे कि भले ही बिटिआ आ जाए लेकिन सिहत ठीक हो। कभी मैं किचन में आ कर चाय बना कर पीता ,कभी बैड में लेट जाता। इसी तरह रात बीत गई। सुबह सात वजे मैंने हस्पताल को टेलीफून किया और नर्स को पुछा कि कोई खबर हो तो मुझे बताये। ज़रा ठैहरो कह कर नर्स चले गई और एक मिनट में ही आ कर बोली ,” कुलवंत जस्ट गेव बर्थ टू ए बेबी बोए “. ख़ुशी से मेरे कान एक दम लाल हो गए, मैंने कहा ,प्लीज़ मेक शोअर। वोह हंस कर बोली ,” ओ यैस ! आई एम शोअर इट इज़ ए बोए “.

मैंने टेलीफून का रसीवर रख दिया और भाग आया। पहले गियानी जी का दरवाज़ा खटखटाया और भीतर आ कर खबर सुनाई तो सभी खुश हो गए. बीबी कहने लगी ,” अब मुंह मीठा करवा “. मैं भागा भागा मठाई की दूकान पर गिया और लड्डू लिए। घर आ कर सभी को खिलाये। रीटा पिंकी भी जाग उठी थीं ,हंस कर उन को छिंदी बंसो कहने लगीं ,” रब ने तुझे छोटा सा भईया दिया है “. वोह भी खुश लग रहीं थी लेकिन उन को कोई समझ नहीं थी कि यह सब किया हो रहा था। फिर गियानी जी मुझे कहने लगे ,” गुरमेल ! अपनी बहन को टेलीफून कर दे “. मैं फिर टेलीफून बूथ की तरफ गिया और बहन को टेलीफून कर दिया ,इस के बाद कुलवंत की सगी बुआ जो चैटहैम में रहती थी ,उस को भी टेलीफून किया ,फिर बहादर को किया ,फिर सब को कर दिया। उस समय मेरी एक मजबूरी भी थी कि सभी रिश्तेदारों को मठाई देने जा नहीं सकता था क्योंकि बेछक गियानी जी की फैमिली थी लेकिन मैं बेटिओं को अकेले छोड़ नहीं सकता था। इस बात से कुछ रिश्तेदारों ने मुझे ताने भी दिए थे लेकिन इन बातों का मुझ पर कोई असर नहीं था ,क्योंकि सभी को खुश करना आसान नहीं होता। फिर भी मैंने कुछ रिश्तेदारों को लड्डू के पैकेट पार्सल कर दिए थे।

काम से मैंने छुटियाँ ले लीं थी। यह भी एक अजीब बात ही थी कि पिंकी बीचस हस्पताल में पैदा हुई थी ,रीटा रॉयल हस्पताल में और अब बेटा निऊ क्रौस हस्पताल में पैदा हुआ था। मैं दो दफा रोज़ कुलवंत को मिलने हस्पताल जाता था। कुलवंत भी इतनी खुश थी कि उस का चेहरा हर दम खिला खिला रहता। जब भी मैं हस्पताल जाता वोह बेटे को ही देखती थी और उस के इस ख़ुशी भरे चेहरे को देख कर मेरा मन भी खिल जाता। चार पांच दिन हस्पताल में रह कर कुलवंत घर आ गई। यूं तो गियानी जी के घर के सारे सदस्य कुलवंत की मदद करने के लिए थे लेकिन मेरी बहन बहनोई आ गए। बहन बहनोई बहुत खुश थे। बहनोई सेवा सिंह बहुत चीयरफुल शख्स है ,आते ही बोला ,” मुझे चाये वाये कुछ नहीं चाहिए ,मुंडा हुआ है तो चाय ही पीणी है ? चल पब्ब को “. बहनोई साहब मैं और जसवंत तीनों पब्ब को चले गए। बहनोई साहब और जसवंत बहुत पीने वाले थे लेकिन मैं इतना आदि नहीं था लेकिन उन के साथ मुझे भी पीनी पढ़ रही थी। जब हम पब्ब से बाहर आये तो बहनोई साहब कहने लगे ,” आज मैंने विस्की वोदका नहीं पीनी ,आज तो मैंने मॉर्टल ही पीनी है “. एक ऑफ लाइसैंस की दूकान से मैंने मॉर्टल ब्राँडी की बोतल ली और घर आ कर हम पीने लगे। मीट बना हुआ था और टेबल पर बैठ कर पीने और बातें करने लगे। बहन बहुत खुश थी और हमारे सामने मीट की प्लेटें रख रही थी और हंस हंस कर बातें कर रही थी। काफी रात तक हम बैठे ,खाया पिया और सो गए। सुबह उठा तो मेरा सर फट रहा था ,मेरे मुंह से आवाज़ निकल नहीं रही थी। बहनोई सेवा सिंह तो गाड़ी ले कर लंडन चला गिया था क्योंकि उस ने काम पर जाना था लेकिन मेरा दिल बहुत खराब था क्योंकि मैं इतना पीने का आदी नहीं था ,ज़िंदगी में पहली दफा इतनी शराब पी थी।

बहन ने बेटे का नाम संदीप रख दिया। हम को भी यह नाम बहुत अच्छा लगा था। बहन सुरजीत कौर बेटे के लिए बहुत कपडे लाइ थी और बहनोई सेवा सिंह ने उसी दिन संदीप को सोने का कड़ा पहना दिया था। देने लेने के सिलसिले में कुलवंत पहले से ही हुशिआर थी ,मुझे कहने लगी कि अब हम को भी बहन को कोई गहना देना चाहिए था। कुछ दिन हो गए थे और कुलवंत शारीरक तौर पर काफी अच्छी थी। कुलवंत ने मुझे कहा की क्यों ना हम वोह सैट जो हम ने जालंधर से खरीदा था ,इस का ही कुछ बहन के लिए बनवा दें। एक दिन हम गाड़ी ले कर सुनार की दूकान जो एक घर में ही थी में जा पहुंचे। यह घर बर्मिंघम रोड पर हमारे गाँव की लड़की सीसो जो नम्बरदार सवर्ण सिंह की ही बेटी थी के पास वाला घर ही था। हम सीसो को ले कर उस सुनार के घर गए और एक चेन वाला हार जिस में एक पैंडट था ,देखा। यह हार साढ़े चार तोले का था। हम ने वोह सैट सुनार को दिया जो हम ने शादी से पहले जालंधर से खरीदा था। सुनार ने एक लैम्प की लाइट से पहले चुडिओं को गर्म किया तो उस में से कुछ काली सी राख निकलने लगी। सुनार ने कहा कि उन चूड़िओं में भार बढ़ाने के लिए भारी राख डाली हुई थी ,इसी तरह रानी हार में भी मिलावट थी। हम किया करते ,सारे सैट का हमें आधा सोना ही मिला और कुछ और पैसे दे कर बहन के लिए हार ले लिया। आते वक्त मैं जालंधर के सुनार को याद कर रहा था जिस की दूकान में देवी देवताओं की फोटो लगीं थीं। बहन के अपने घर को जाने का वक्त आ गिया था।

कपडे जो जो बहन ने मांगे कुलवंत उस को दूकान में ले गई और खरीद लिए। फिर उस ने बर्फी मांगी जो बहन ने अपने रिश्तेदारों को देनी थी। स्वीट मैंन स्ट्रीट में अमीन नाम के एक पाकिस्तानी की हलवाई की दूकान थी। हम ने तकरीबन पचीस किलो बर्फी का आर्डर दे दिया और अमीन बर्फी तैयार करके दूसरे दिन ही हमारे घर छोड़ गिया। एक शनिवार बहनोई सेवा सिंह आये ,रात रहे और दूसरे दिन रविवार को बहन और बहनोई लंडन को रवाना हो गए।

चलता. . . . . . . . . .

 

 

 

 

4 thoughts on “मेरी कहानी 97

  • Man Mohan Kumar Arya

    Namaste adarniy Shri Gurmail Singh ji. Aaj ki kist padh kar prasannata hui. Iswar ne putra janm kee aap ki ichcha ko pura kiya. Bachche aur sukh dukh iswar ki dene hain, aisa me manta hun, Bharat ke sunar ne dhokhadhari ki thee, yeh koi nai baat nahi. Manushya lalach ka putla hai. Lalach me he jyadatar pap hote hain. Putr use kahte hain jo mata pita ka nam roshan kare arthat unhe pavitra kare. Aaj ki ‘Mere Kahani’ ke liye dhanyawad. Mere destop ne kal ek bar kaam kiya tha. Uske bad phir sust ho gaya hai. Mobile me lekh padh kar kuch shabd bhej raha hun. Sadar.

    • मनमोहन भाई ,लेख पसंद करने के लिए धन्यावाद . बेटे के आने से फैमिली मिक्स हो गई और फिर हम को और ज़िआदा बच्चों की कोई चाहत नहीं थी . सुनारों का धर्म तो पैसा ही होता है ,देवताओं की तस्वीरें तो लोगों को दिखाने के लिए ही होती हैं . मेरे डैस्क टॉप ने तो बहुत दफा ऐसा किया है .मैं हर रोज़ नवभारत टाइम्स पे अपने कॉमेंट लिखता हूँ .पिछले दो महीने मुझे बहुत तकलीफ दी किओंकि कोई अक्षर प्रिंट ही नहीं होता था ,बहुत दफा नवभारत टाइम्ज़ वालों को ईमेल किये लेकिन कुछ होता ही नहीं था .अब ठीक है .किया कहें यह मॉडर्न टैक्नौलोजी है .

      • Man Mohan Kumar Arya

        Namaste awan dhanyawad. Mera computer abhi bee jayvijay site khol nahi raha hai. 6 din ho gaye hain. Mobile par jayvijay site khul rahi hai. Computer me sabhee sites khul rahi hai parantu jayvijay ke na khulne me kya karan hai samajh me nahi aa raha. Apke comments achche avam upyogi hai. Abhar awam dhanyawad.

        • Manmohan bhaai’ aap ka kamplootar khul nahin raha, main aap ki museebat samajh sakta hoon kionki mere saath aisa bahut dafa hua hai ,refresh karne vaala to nahin?kiya aap http://www.jayvijay.co hi likhge hain ‘com to nahin?ya vijay bhaai se poochh lijiye.

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