गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

जीतने  हम  थे  गये  दिल  हार  करके आ गये
कह  न पाये थे मगर  इजहार  करके  आ  गये

सिल  गए थे होंठ जब  था सामना उनसे हुआ
बस नजर को ही  मिला इकरार करके आ गये

इश्क  में हैं  लाजिमी  गुस्ताखियाँ लगतीं सभी
लग  गया  उनको  बुरा मनुहार करके आ गये

आग का  दरिया सभी  कहते यहाँ है इश्क का
लो सनम हम भी उसे अब पार करके आ गये

थे  बहुत   रोड़े    हमारी   राह  में  आये  मगर
हौसले  को  ही  बना  पतवार  करके  आ गये

आँधियों में जल रहा है देख लो अब तक दिया
रुख  हवाओं  के  सभी  लाचार करके आ गये

जिंदगी  उलझी  हुई थी  मुश्किलो में इस कदर
मुश्किलों  को  ही बना  औजार  करके आ गये

“राज” खुशियों का हमारी  पूछतें हो तुम अगर
तो  सुनो   हम दर्द का व्यापार  करके  आ गये

— राजेश श्रीवास्तव

(कटनी म.प्र.)

राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर'

राजेश श्रीवास्तव प्रखर कटनी (म.प्र.)