सामाजिक

आईना बोलता है

प्रभु सहारे, रेलम् पेल मंत्रालय :

राजधानी और दूरंतो गाड़ियों में IRCTC द्वारा गुणवत्ता युक्त सुस्वाद खाना देने का प्रयास (हालाँकि अभी १५ दिन पहले मुंबई-दिल्ली राजधानी के प्रथम श्रेणी में ऐसा कुछ नहीं मिला), स्टेशनों पर ५ सितारा वेटिंग लाउंज, वातानुकूलित डिब्बों का नया प्रारूप, आदी, आदि, इत्यादि (so on and so forth till the finish)।

माननीय सुरेश प्रभु जी बडी़ तन्मयता से रेलवे को चमकाने में लगे हुए हैं। पर क्या मैं, भारत विशाल का एक आम नागरिक, यह पूछने की हिमाकत कर सकता हूँ कि यह तमाम प्रयोग किसके लिये हैं ? अर्थात, किस तबके के लिये हैं ? राजधानी जैसी ट्रेन की तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते तो उसके खाने की गुणवत्ता से हमें क्या ! ५ सितारा विश्राम कक्ष में हम धोती, लुंगी वालों कौन घुसने देगा !

हमें तो प्लेटफार्मों पर ही अखबार, चादर बिछा कर देरी का पर्याय बनी भारतीय रेल का इंतज़ार करना है, प्लेटफार्मों पर बे रोक टोक बिकने वाले कूड़े से ही पेट भरना है और लग जाए तो प्लेटफार्मों पर कहीं कहीं उपलब्ध बेहद गंदे संडासों (मैं शौचालय जैसा स्वच्छ शब्द नहीं प्रयोग करूँगा) का इस्तेमाल करना है।

इसका सीधा सा मतलब यह है कि विष्णु सहस्त्र नाम रूपी विकास के नाम पर जो कर हमसे ‘उगाहा’ जा रहा है, क्योंकि रेल में सबसे ज़्यादा हम ग़रीब ही सफर करते हैं ( सुविधा संपन्न डिब्बों का १५ गुणा ), वो पैसा अमीरों की सुविधा आपूर्ति और विकास में लगाया जा रहा है ।

इसका सीधा और साफ सा मतलब यह हुआ कि प्रभु भी गरीबों की नहीं सुनता। सच भी है । अगर सुनता तो हम ग़रीब ही क्यों होते।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

7 thoughts on “आईना बोलता है

  • विजय कुमार सिंघल

    आपके तर्क कमज़ोर हैं। आम नागरिक रेलवे आदि सभी सेवाओं में उत्तम सेवा चाहता है, लेकिन सब कुछ मुफ़्त में और बिना कोई ज़िम्मेदारी लिये। भारतीय रेलों का किराया दुनिया में सबसे कम है। अगर आज प्रभु बजट में रेल किराया जरा सा भी बढ़ा दें तो कल आप ही उनकी आलोचना में क़लम तोड़ देंगे।
    सामान्य श्रेणी का किराया रेलवे की लागत की तुलना में बहुत कम है। इसकी पूर्ति उच्च श्रेणियों की किराया लागत से अधिक लेकर की जाती है। अगर ऐसा न करें तो रेलें ठप्प हो जायें। विदेशी निवेशक और पर्यटक चाहिए तो उनको सुविधायें भी अच्छी देनी पडेंगी।
    रही सफाई की बात ! तो इसके लिए हमारी मुफ़्तख़ोरी ज़िम्मेदार है। हमें गंदगी में रहने और फैलाने में मज़ा आता है।
    सुरेश प्रभु जो कर रहे हैं वही सही है।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    छोटा लेकिन बहुत अच्छा लेख . हमेशा से यही बात मैं सोचता चला आ रहा हूँ कि गरीब के लिए किया सुभिदा है ?कुछ भी तो नहीं .एक बात में प्रभु भी सच्चे हैं ,गरीबों से किया मिलेगा ,कमाई तो अमीरों से ही होगी !

    • मनोज पाण्डेय 'होश'

      हो सकता है, आप जैसे संवेदनशील कुछ सत्ता में भी हों, यही सोच कर अपनी संवेदना व्यक्त करता रहता हूँ । धन्यवाद।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    छोटा लेकिन बहुत अच्छा लेख . हमेशा से यही बात मैं सोचता चला आ रहा हूँ कि गरीब के लिए किया सुभिदा है ?कुछ भी तो नहीं .एक बात में प्रभु भी सच्चे हैं ,गरीबों से किया मिलेगा ,कमाई तो अमीरों से ही होगी !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन
    जबाब लेकिन नहीं मिलने वाला

    • मनोज पाण्डेय 'होश'

      मेरे लेख ने आप की सोच को आकर्षित किया, यह उपलब्धि कम नहीं है। धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      जबाब मैंने दे दिया है हालाँकि थोडी देर हो गयी है।

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