संस्मरण

मेरी कहानी 115

12 मार्च 2016 को बुआ निंदी और निंदी की पत्नी कुलजीत आये थे और उन के आते ही सारे घर में ख़ुशी का माहौल हो गिया था। कुलवंत की यह बुआ सगी नहीं है लेकिन सगिओं से सौ गुना ज़्यादा सगी है, अगर मैं कहूँ कि इस परिवार के बगैर हम कुछ भी नहीं हैं, तो यह झूठ नहीं होगा। अक्सर शादी विवाह के कार्डों पर लिखा होता है ” relations are settled in paradise, celebrated on earth “, अगर यही बात मैं बुआ के परिवार के बारे में कहूँ तो यह भी सही होगा क्योंकि एक दिन बर्मिंघम में शॉपिंग करते करते अचानक हमारी मुलाकात बुआ फुफड़ से हो गई थी, जिसके बारे में मैं पहले लिख चुक्का हूँ। बुआ फुफड़ हमारे टाऊन में ही रहते थे sherwood street में लेकिन हमें पता ही नहीं था। जब पता चला तो हम कभी-कभी एक दूसरे के घर जाने लगे थे। हमारे अभी कोई बच्चा नहीं था लेकिन बुआ के बच्चे जिन्दी और बेटी सुरिंदर दस बारह साल के थे और निंदी तो अभी छै सात साल ही होगा। हम मिलते तो रहते थे लेकिन अभी हमारी नज़दीकी इतनी नहीं थी। फुफड़ को दमे का रोग था और उस समय काम उन्होंने छोड़ दिया था। पहले वोह मिडलैंड रैड बस कम्पनी में बस कंडक्टर लगे हुए थे और यह उस समय मिडलैंड रैड में दो तीन इंडियन लड़के ही काम करते थे। फुफड़ इंडिया से ऐफएससी पास करके आये थे और बात करने में बहुत इंटेलिजेंट लगते थे। हमारी मुलाकात उस समय हुई थी जब इनोक पावल की स्पीचों ने गोरे लोगों के दिलों में हमारे लिए ज़हर भर दिया था और गोरे बदमाश छोकरे जिनको स्किन हैड बोलते थे हमारे लोगों में डर पैदा कर रहे थे। हमारे लोगों में एक डर सा पैदा हो गिया था कि हमें इंगलैंड से रुखसत होना पड़ेगा। कुछ लोगों ने अपने घर बेच दिए थे और ऐसा ही हम ने किया था। हम ने अपना मकान 34 carter road बेच दिया था लेकिन यह मकान गियानी जी ने ले लिया था। 14 सौ पाउंड का मकान हमने बेचा था और पैसे हम ने बैंक में रखे हुए थे।

एक शाम को बूआ फुफड़ आये और हमें बताया कि उन्होंने बर्मिंघम में घर ले लिया है लेकिन डिपॉज़िट रखने के लिए पैसे उनके पास नहीं थे। बिलकुल साधारण बातें हो रही थीं और फुफड़ बोला, “गुरमेल ! कुछ पैसे का इंतज़ाम हो सकता है? अपना मकान बेचने के बाद हम पैसे वापस कर देंगे”. मैं ने कहा, “कितने पैसे चाहिए?”. फुफड़ बोला, “अगर पांच सौ पाउंड हो जाए तो और किसी से मांगने नहीं पड़ेंगे”. मैंने कहा, “कल शाम को पैसे ले जाना”. फुफड़ कुछ नर्वस सा हो गिया, उस को यकीन नहीं हुआ कि इतने पैसे हम उसे दे देंगे क्योंकि जो मकान वोह बर्मिंघम में खरीद रहे थे, उसकी कीमत 1800 पाउंड थी, यानी मकान की कीमत के तीसरे हिस्से से कुछ कम हम उन को दे रहे थे या यूं कह सकते हैं कि अगर एक करोड़ का घर लेना हो तो कोई दोस्त उसे 30 लाख दे दे। दूसरे दिन मैं अपनी बिल्डिंग सोसाइटी से जो एक प्रकार की बैंक ही होती है से पांच सौ पाउंड कैश ले आया, क्योंकि हमने अपना मकान बेच दिया था और पैसे हमारे पास थे । शाम को जब फुफड़ हमारे घर आया तो मैंने उन्हें पांच सौ पाउंड की गठरी पकड़ा दी। फुफड़ के मुंह से कोई लफ़ज़ निकल नहीं रहा था, उनका वोह चेहरा मुझे अभी तक याद है। उन्होंने पैसे ले तो लिए लेकिन लगता था वोह लेने चाहते नहीं थे। कोई रसीद नहीं थी, ना ही चैक था, पैसे बिलकुल कैश थे। जब वोह उठ कर घर जाने लगे तो वोह चुप चुप थे।

इसके दो महीने बाद 1968 में बुआ फुफड़ ने बर्मिंघम हैन्ड्ज़वर्थ wilton road पर घर ले लिया। वुल्वरहैम्पटन sherwood street वाला उन का घर बिक गिया तो फुफड़ एक दिन मुझे सारे पैसे वापस कर गिया। इस घटना के कुछ ही महीने बाद हमारी बेटी पिंकी पैदा हुई थी। यह जो 500 सौ पाउंड वाली घटना है, मुझे लिखने की जरुरत नहीं थी, यह लिखते हुए मुझे हिचकचाहट सी महसूस हो रही थी लेकिन अगर मैं ना लिखता तो हमारे इस रिश्ते में आये मोड़ को समझना मुश्किल हो जाता। आज जो हमारा रिश्ता है, उसकी जड़ें वोह पांच सौ पाउंड ही है क्योंकि इस के बाद बुआ फुफड़ और सारे परिवार ने हमें इतना पियार दिया है कि इसकी कीमत उस पांच सौ पाउंड से कई हज़ार गुणा ज़्यादा है। छोटी से छोटी बात हमारी सांझी है. हमारे इस पियार की कोई सीमा नहीं है, बस इस से ज़्यादा और मैं अब नहीं लिखूंगा।

बुआ फुफड़ ने wilton road पर घर इस लिए लिया था, क्योंकि बुआजी के सगे भाई मघर सिंह का घर इस घर के बिलकुल सामने था। वोह वक्त था, जब हमारे लोग कोशिश यह ही करते थे कि यहां अपने ही लोगों का घर हो वहां ही खरीदने की कोशिश करते थे क्योंकि सभी एक दूसरे के नज़दीक रहने की कोशिश करते थे और आज इस के विपरीत हो गिया है, लोग एक दूसरे से दूर घर लेना चाहते हैं. कुछ ही दूरी पर बुआ जी की सगी बहन शांती का घर upland road पर था। पहले मैंने बुआ के भाई और बहन को नहीं देखा था (कुलवंत ने ही बचपन में देखा हुआ था ). अब हमारा यह रिश्ता इन लोगों से भी गहरा हो गिया था जो अब तक चला आ रहा है। इसके बाद तो एक और बहुत बड़ा खानदान हमारी इस क्लब्ब में शामल हो गिया जो अब तक जारी है, जिस के बारे में समय आने पर लिखूंगा। फिलहाल तो बुआ फुफड़, बुआ के भाई मग़र सिंह और बुआ की बहन शांती के बारे में ही लिखूंगा.

कुलवंत की सगी बुआ फुफड़ तो चैटहैम में रहते थे जो कैंट में है। इस सगी बुआ ने कुलवंत को कोई पियार नहीं दिया। दोनों बुआ फुफड़ अजीब किसम के लोग थे, बस एक ही दफा वोह हमारे घर आये थे, जब हमारा बेटा संदीप पैदा हुआ था। अब जो बात मैं लिखने जा रहा हूँ, वोह कभी भी भूलने वाली नहीं है। जब कल बुआ निंदी आये हुए थे तो इस घटना के बारे में बातें होने लगीं तो संदीप बोला, “डैड ! मुझे भी वोह बात कुछ कुछ याद है”. फिर हमने सोचा कि यह घटना 1976 के करीब हुई होगी और संदीप उस समय चार साल का रहा होगा। बात यह थी कि कुलवंत की चैटहैम वाली बुआ की लड़की की शादी थी और हम सबने इस शादी में ननिहाल की तरफ से जाना था और चूड़े की रसम बुआ उसके भाई मग़र सिंह और बुआ की बहन शांती और उनके लड़कों की तरफ से होनी थी। मेरे और फुफड़ सुरजीत सिंह के पास तो अपनी अपनी गाड़ियां थीं लेकिन मग़र सिंह और शांती के पती निर्मल सिंह के पास गाड़ियां नहीं थीं। इतने मैम्बर दो गाडिओं में जा नहीं सकते थे, इस लिए उन लोगों की खातर फुफड़ ने 12 सीट वाली वोल्कवैगन वैन हायर कर ली जिसका इंजिन पीछे होता था। हम ने शुक्करवार् को चलना था और रविवार को वापस आना था। बुआ फुफड़ ने आधा दिन शुकरवार को काम करना था और इस के बाद घर आ कर फुफड़ ने कार हायर वालों से गाड़ी लेने जाना था, फिर खा पी कर कपडे बदल कर चैटहैम का सफर शुरू करना था।

मैं और कुलवंत बच्चों को ले कर बुआ के घर तकरीबन दो वजे पहुँच गए। जनवरी का महीना था, दिन बहुत छोटे थे और ठंड भी बहुत थी और चार घंटे का सफर था। सोचा तो यह था कि हम दिन के वक्त ही रवाना हो जाएंगे लेकिन हमें तीन बज गए और कुछ कुछ अँधेरा होना शुरू हो गिया। वैन में सारा सामान रख लिया गिया, सभी बैठ गए. मग़र सिंह बोला, “बोले सो निहाल” और सभी ने सत सिरी अकाल बोला और फुफड़ गाड़ी चलाने लगा। फ्राइडे का दिन होने के कारण रश बहुत था, इस लिए लोकल रोड्ज़ पर हमारा बहुत वक्त लग गिया। जब हम मोटर वे M 6 पर पहुंचे तो अँधेरा हो गिया था। मोटर वे पर कोई रश नहीं था, इस लिए फुफड़ गाड़ी को तेज चलाने लगा। M 6 पर तकरीबन हम 30 मील ही गए होंगे कि इंजिन गर्म हो गिया और सूई H पर आ गई। फुफड़ बोला, ” गुरमेल ! इंजिन तो गर्म हुआ लगता है “, मैंने कहा ” फुफड़ा गाड़ी खड़ी कर दे “. फुफड़ ने गाड़ी hard shoulder पर खड़ी कर दी (यह रोड इस लिए ही होती है कि अगर गाड़ी में कोई नुकस पड़ जाए तो इस पर गाड़ी खड़ी कर सकते हैं, वरना यहां गाड़ी चलाना मना है).

गाड़ी खड़ी करके फुफड़ ने बोनेट खोला तो देखा कि फैन बैल्ट पुली से उत्तर गई थी। कोई टूल भी हमारे पास नहीं था, इस लिए हम RAC को टेलीफून करने के लिए चल पड़े। अगर RAC के मैम्बर हों तो मुसीबत के वक्त उन का मकैनिक अपनी गाड़ी ले कर आ जाता है। एक एक मील पर टेलीफून के बॉक्स लगे हुए हैं। हम को आधा मील ही जाना पड़ा क्योंकि हम टेलीफून के नज़दीक ही थे। फुफड़ ने टेलीफून कर दिया और उन्होंने हमें गाड़ी में बैठ कर इंतज़ार करने को बोल दिया। ठंड बहुत थी और हम ने सारे कपडे बच्चों के ऊपर डाल दिए। एक घंटे बाद RAC वाले आ गए, उन्होंने देखा और नई फैन बैल्ट फिक्स कर दी। हम खुश हो गए और अपना सफर शुरू कर दिया। सौ मील का सफर हम ने आसानी से तय कर लिया और मोटर वे M 6 से उत्तर गए और रौद्रम टाऊन सेंटर में आ गए। हम छोटी सड़क पर जा ही रहे थे कि फैन बैल्ट फिर उत्तर गई। हम ने फिर RAC को टेलीफून किया और उधर शादी वाले घर के लोग हमारी इंतज़ार कर रहे थे क्योंकि चूड़े की रसम हम ने ही निभानी थी। हम ने घर वालों को भी टेलीफून कर दिया कि हम लेट पहुंचेंगे। हम वैन में बैठ कर इंतज़ार करने लगे, सभी भूखे थे, इस लिए हम ने एक दूकान से खाने को कुछ लिया और बच्चों को खिलाया। RAC वाले दो घंटे बाद आये और इस समय रात के दस वज चुक्के थे।

मकैनिक ने वोही फैन बैल्ट फिक्स कर दी और चलते बने। हम ने भी सफर शुरू कर दिया। आगे हम ने BLACKWALL TUNNEL में जाना था। यह सुरंग थेम्ज़ दरिया के नीचे से जाती है और तकरीबन पांच सौ गज़ लम्बी है। यह टनल 1897 में प्रिंस ऑफ वेल्ज़ ने शुरू की थी और इस का मकसद था ट्रेड को बढ़ावा देना क्योंकि इस से दूरी नज़दीकी में बदल गई थी। पहले पहले उस समय इस सुरंग से लोग पैदल या साइकल पर चलते थे और साथ ही उस समय के घोड़ों से चलने वाले कैरेज चलते थे जिन में यात्री ट्रैवल करते थे जैसे हमारे देश में टाँगे होते थे। समय के साथ साथ इस के निचे से कारें जाने लगीं और ट्रैफिक बढ़ता गिया, इस लिए 1967 में साथ ही एक और टनल बना दी गई और अब एक सुरंग जाने के लिए और एक आने के लिए है क्योंकि यह वनवे ट्रैफिक कर दिया गिया है। इस सुरंग को हम पार कर गए। जैसे ही हम ने पार किया, फैन बैल्ट फिर उत्तर गई। अब तो हम बहुत मुसीबत में पड़ गए क्योंकि हम बहुत लेट हो चुक्के थे। आगे एक टेलीफून बॉक्स था, हम ने पहले तो घर वालों को टेलीफून किया कि हम इस जगह पर हैं, फिर RAC को किया।

एक घंटे बाद घर वाले तीन गाड़ियां ले कर आ गए। मशवरा यह हुआ कि सभी लोग उन की गाडिओं में चलें और मैं और फुफड़ RAC वालों की इंतज़ार करें। मैं और फुफड़ ने भी शुक्र मनाया कि बच्चे तो सेफ हों। सभी चले गए, मैं और फुफड़ गाड़ी में बैठे मकैनिक की इंतज़ार करने लगे। यह इंतज़ार इतना बुरा था कि भूलने वाला है ही नहीं। बाहर फ्रीजिंग कंडीशन थी और हम दोनों गाड़ी में बैठे सर्दी से सुकड़ रहे थे। ना तो हमारे पास कोई कपडा था और न ही हम इंजिन को ऑन करके हीटर लगा सकते थे। कभी कभी मुसीबत में भी हंसी आ जाती है, फुफड़ बोला ” यार ! कोई साला पुलिस मैन ही हमें पकड़ कर पुलिस स्टेशन ले जाए, कमज़क्म इस ठंडी से तो बच्च जाएंगे ” और हम हंसने लगे। अब तो सुबह के चार वज्ज गए और RAC वाला भी आ गिया, उस ने देखा और फैन बैल्ट फिक्स कर दी। जब हम ने उस को सारी बात बताई तो वोह बोला कि हम उस को फॉलो करें और अगर गाड़ी ठीक चलती रही तो वोह चला जाएगा, वरना वोह फिर दुबारा देखेगा कि बात किया है।

कोई चार पांच मील फुफड़ गाड़ी ड्राइव करता रहा। जब RAC वाले ने देखा कि गाड़ी ठीक जा रही है तो वोह दुसरी सड़क पर चला गिया। अब चैटहैम भी आठ दस मील ही रह गिया था और सुबह के पांच वज्ज गए थे। कुछ ही दूर गए तो फैन बैल्ट फिर उत्तर गई। अब तो फुफड़ रो पड़ा और मेरा दिल भी दुखी हो गिया। पता नहीं मेरे दिल में किया आया, मैंने इंजिन का बौनेट खोला और बैल्ट को एक पुली पे चढ़ा कर दोनों हाथों से जोर लगाया तो बैल्ट दुसरी पुली पर चढ़ गई और मैंने फुफड़ को कहा कि तू बैठ और अब मैं चलाऊंगा। मैंने ड्राइव करना शुरू किया लेकिन एक बात का धियान रखा कि एक्सेलरेटर पैडल को ज़्यादा नहीं दबाया और धीरे धीरे तीस मील घंटे की रफ़्तार से चलाने लगा। छै वज्जे के करीब हम 88 चैटहैम रोड पर कुलवंत के फुफड़ के घर के आगे आ खड़े हुए। जब हम ने बैल की तो कुलवंत ने दरवाज़ा खोला, हम भीतर आ गए और बुआ भी आ गई। कुलवंत का रो रो कर बुरा हाल हो गिया था। एक दम उन्होंने हीटर लगा दिया और हीटर भी कमबख्त मट्टी के तेल का था जिस से तेल की बू आ रही थी और फुफड़ को चढ़ रही थी क्योंकि उस को दमे का रोग था।

जल्दी जल्दी कुलवंत ने चाय बनाई। हम चाय पीते पीते कहानी सुना रहे थे। जिनके लिए हम ने यह वैन हायर की थी वोह सभी मज़े से सोये हुए थे। कुछ देर बाद बुआ खाना ले आई, खाना खा के अब हमने सोना ही था और गुरदुआरे शादी में शामल नहीं होना था, फुफड़ तो बहुत गुस्से में था और बोल रहा था कि हम ने वापस वुल्वरहैम्पटन भी जाना था और पहले वैन रिपेयर का भी इंतज़ाम करना था और जिनके लिए वैन ली थी, वोह साहब बन कर सो रहे रहे थे, बुआ उसे चुप रहने का संकेत दे रही थी। कुछ देर बाद मैं और फुफड़ दोनों ही एक बैड में सो गए क्योंकि घर में मेहमान बहुत होनें के कारण जगह की तंगी थी। हम सो गए, शादी की रस्में कैसे हुईं हमें कुछ पता नहीं, यह शादी हमारे लिए तो सपने की तरह हो गई थी।

चलता……. . .

10 thoughts on “मेरी कहानी 115

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    आदरणीय जी सप्रेम नमस्ते ———- लाजवाब सृजन यथार्त आत्मकथा

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      राज किशोर जी , बहुत बहुत धन्यवाद .

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। आपने यात्रा में जो कष्ट सहे वह आपकी कठिन या अग्नि परीक्षा लग रहे हैं। हमने पढ़ा व सुना है कि मनुष्य के जीवन में जो मुसीबतें आती हैं वह उसे भविष्य में आने वाली उससे बड़ी मुसीबतों के लिए तैयार करती हैं। आपका अनुभव भविष्य में आपके काम आया होगा ऐसा अनुमान लगता है। आपने फुफड़ जी की निवास खरीदने में जो मदद की यह आपके विश्वास एवं उच्च सोच का उदाहरण है और उदार व्यक्तित्व का प्रमाण है। सादर धन्यवाद।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन भाई ,धन्यवाद .हंसी ख़ुशी ,दुःख और सुख जिंदगी का हिस्सा ही तो हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    भाईसाहब, आपने रास्ते में जो कष्ट सहन किये उनको जानकर दुख हुआ। पर आप अपनी हिम्मत से इससे पार पा गये। आपको साधुवाद।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद ,विजय भाई .

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद ,विजय भाई .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, सही लिखा है- ” relations are settled in paradise, celebrated on earth”. 1967 में साथ ही एक और टनल बना दी गई, क्योंकि आपकी शादी जो होने वाली थी. आ रहा है, वह दिन भी नज़दीक. कोई अच्छी-सी रचना बनाकर भेज दीजिए. एक बेहतरीन एपीसोड के लिए आभार.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, सही लिखा है- ” relations are settled in paradise, celebrated on earth”. 1967 में साथ ही एक और टनल बना दी गई, क्योंकि आपकी शादी जो होने वाली थी. आ रहा है, वह दिन भी नज़दीक. कोई अच्छी-सी रचना बनाकर भेज दीजिए. एक बेहतरीन एपीसोड के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      हा हा लीला बहना , कोशिश करेंगे ,धन्यवाद .

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