कविता~ जल रहा दीप
जल रहा दीप मद्धम मद्धम मन पुलक रहा चंदन चंदन। खोल रहे दृग सुमन द्वार मचल रहा दिल बन बहार
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Read Moreआजकल एक नया प्रचलन चला है। दलित अपने आपको मुसलमानों से नत्थी कर यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं
Read Moreनेरुल में जानकी ने समुद्र के किनारे कम्पनी के चार कमरों वाले फ्लेट को अपनी इच्छानुसार व्यवस्थित रूप से सजा
Read Moreमानस पटल पर महाभारत काल की घटना याद आती है जब गुरु द्रोणाचार्य ने उपेक्षित जाति के एकलव्य के हाथ
Read Moreआ धमके साले-बहनोई होली में बजट कर गयी साफ रसोई होली में। बच्चों की मां की फरमाइश चुकी नहीें मैंने
Read Moreबार-बार घड़ी को देखते हुए रेखा उकता उठी। “बारह बजने को आये,नहीं आना तो यह भी नहीं कि एक फ़ोन ही
Read Moreहमारे धर्मशास्त्रों में मातृभूमि के महत्व पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है। वेद का कथन है- ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’ अर्थात भूमि मेरी माता
Read Moreकिसी मित्र को रोकने का प्रयास किया गया है इन पंक्तियों के माध्यम से —— •••••••••••••••••••• यह दर्द आया कहाँ
Read Moreउम्मीद पर ही आज दुनिया चल रही है। उम्मीद पर ही एक उम्मीद पल रही है। उम्मीद को पुरा होते
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