कविता

“दोहा, माँ की वंदना”

 

क्षमा करो गलती प्रभो, गौरी नन्द गणेश
मोदक लड्डू पाइए, शिव सुत प्रभु महेश।।- 1
जगजननी भयहारिणी, कृपा करो हे मातु
सहकुल मैं वंदन करूँ, नव दिन माँ नवरातु।।-3
शिव शम्भू शांत करें, माँ काली का रोष
हाथ जोर विनती करूँ, पाऊँ फल आशीष।।- 3
ले अच्छत दूब चंदन, धूप दीप नैवेद
करूँ आरती कुल सहित, राखहु किला अभेद।।- 4
मन मोरा निश्छल रहे, कुनबा रहे निरोग
प्रीति परस्पर सुख सखा, कबहु न मिले वियोग।।- 5
ममता समता साधना, सर्व रहे समभाव
भूख न विह्वल हो कभी, पेट न हो आभाव।।- 6
जन जन जन की भावना, मातु आपसी होय
दुख बिहँसे न धन घटे, ना कटुता चित सोय।।- 7
भ्रष्ट आचरण आतंकी, मिथ्या जग अभिमान
पोषण इनका कब भला, कस इनसे कल्यान।।- 8
माँ भारत माँ का गान, जयकारा सम्मान
हर मुंह से निकले सदा, सदा बढ़ाए मान।।- 9
जिस मुंह हिचकारा लगे, है वह पूत कपूत
लगि प्यारा कपटि कपट, कपट न करे सपूत।।- 10
बोल माँ जगदंबे की, जय माँ की जय बोल
माँ भारत के लाल सब, मीठी भाषा घोल।।- 11

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ