कहानी

पत्रात्मक कहानी : खाली नहीं, छलकता गिलास

श्रद्धेय अंकल
प्रणाम। फोन मोबाइल ई-मेल, एस.एम.एस. के युग में यह पत्र आपको आश्चर्य चकित करेगा परन्तु मेरी जीवन यात्रा में आपके योगदान को श्रद्घा-सम्मान देने हेतु यह पत्र लिख रही हूं। अब तक के जीवन के चलचित्र में इतनी मुख्य रीले हैं, जो मुझे हमेशा स्मरण हैं व रहेंगी। आज मन कर रहा है कि उन सभी पुरानी-नई बातों केा याद करते हुए आपके साथ बांटू। विश्वास है कि मेरी अब तक की कहानी के ये अंश मेरी भावनाओं को आप तक पहुंचाने में सार्थक होंगे।

अंकल, गणित के कठिन प्रश्न आप सरलता से हल कर देते थे। ट्यूशन छोडकर मैं आपके पास आती थी। ड्यूटी से हारे थके होने पर भी आपके चेहरे पर शिकन तक नही आती थी, मात्र इतना कहते थे, बेटी मुझे एक कप चाय तो पीने दो। चाय पीने के पश्चात आप मेरी कठिनाईयों को तो सरल करते ही थे, साथ ही टेस्ट पेपर बना कर यह भी परीक्षा लेते थे कि मुझे कितना समझ में आया। कक्षा 10 में बोर्ड की परीक्षा में 100 में से 94 अंक आने पर मेरी मिठाई खाते समय आपकी आंखे भरी हुई थी, मैं तो निःशब्द थी एवं गुरू दक्षिणा भी तो नहीं दे पाई।

अंकल, जब मेरी मम्मी मुझे काॅलेज में पढाई करवाने की अनुमति नहीं दे रहीं थीं, तब आप ने ही उन्हें लडकियों को पढ़ाने की आवश्यकता एवं महत्व समझाया। हमारे परिवार की आर्थिक स्थ्तिि अच्छी नहीं होने के कारण फीस पुस्तकों की व्यवस्था भी की एवं मेरे मन की बैटरी को समय समय पर चार्ज करते रहे। आज मैं ग्रेजुएट के साथ बी.एड. भी हूँ, इसका श्रेय आपको ही तो हैं, अंकल। शिक्षा ने मुझे आत्मसम्मान भी दिया एवं ज्ञान के साथ जीवन यात्रा के संघर्षो का मुकाबला करने की शक्ति ऊर्जा प्रदान की।

अंकल, हर जन्मदिन पर आप मुझे पुस्तकें उपहार में देते थे, साथ में भावपूर्ण कविता भी मेरी फाइल में वे सभी कविताऐं अनमोल उपहार के साथ सुरक्षित हैं। जिस वर्ष आंटी नही रहीं थीं, उस वर्ष भी आपने चार पंक्तियों की छोटी सी ही कविता दी थी, पर उस दर्द में भी आपके पास मेरे लिए समय रहा। आपकी दी हुई पुस्तकों से मेरी घरेलू लाइब्रेरी हो गई है, जो हर स्थिति में मेरी सखी भी हैं, सहेलियां भीं।

अंकल, मुझे दूध, फल, हरी सब्जी अच्छी नही लगती थीं। मैं जब आपका कहना नहीं मानती थी, तो आप चुप हो जाते थे। आप ने मुझ पर कभी क्रोध नहीं किया, भाषण भी नहीं दिए, बस आप मौन हो जाते थे। एनीमिया की गंभीर अवस्था में आप ने मुझे अपना खून देकर मुझे नवजीवन भी दिया एवं पूरे सप्ताह आॅफिस से अवकाश लेकर लगातार हास्पिटल में मेरी सेवा में ही लगे रहे। दूध, फल का महत्व पुनः समझाया एवं फास्ट फूड के नुकसान भी बतलाए।

अंकल, जब मुझे मोबाइल पर अश्लील संदेश मिलते थे एवं अनजान लडके मुझे फोन पर तंग करते थे, तो आप ने टेलीफोन एक्सचेंज से उनके नाम घर का पता मालूम किया, उनके मम्मी-पापा से बात की एवं इस समस्या का निराकरण किया। आपकी समाज में प्रतिष्ठा एवं नाम से शैतान लडके कांपने लग गए एवं उन्होनेें क्षमा भी मांगी एवं इस प्रकार की गलत हरकतों को छोडने का भी संकल्प लिया।

अंकल, घर, परिवार, आॅफिस, समाज की सब जिम्मेदारियां वहन करते हुए भी आप मुसकराते ही रहते, खुशियां लुटाते पर दर्द स्वयं ही पीते। माइगै्रन सिर-दर्द से जब आपकेा इंजेक्शन लगते थे, तब भी कुछ नही कहते। एक बार मेरी सहेली ने जब मुझे बतलाया कि तुम्हारे प्रिय अंकल हास्पिटल में भरती हैं, तो मुझे गुस्सा तो बहुत आया परन्तु आपकी हालत देखकर मैं आप से गुस्सा कर भी नहीं पाई एवं जितना बन सका बस सेवा करती रही।

अंकल, क्या भूलूं, क्या याद करूं ? आंटी की असमय मृत्यु पर भी जिस धैर्य से आपने अपनी इकलौती बेटी को संभाला वह दृश्य मेरे मानस पर आज भी अंकित है। ममता बहन को आपने सम्भाला, पढ़ाया, लिखाया, आत्मनिर्भर बनाया, सुसंस्कार दिए, ममता बहन के लिए आपने ‘पापा‘ के साथ ‘मम्मी‘ का रोल भी निभाया। आप थक जाते थे , पर टूटते नही थे, बिना भाषण दिए ही मैं आपसे बहुत कुछ सीखती रही। मेरी मम्मी चाहकर भी आपको घर का खाना नहीं खिला पाई, ममता बहन होस्टल में पढ़ती थी, आप होटल-मेस-केन्टीन का खाना खाकर गिरे हुए स्वास्थ्य को और बिगाडते रहे। हास्पिटल में एडमिट होने पर जब मैने आपको हाॅस्पिटल की थाली खाते हुए देखा, तो मैं अपने आंसू नहीं रोक पाई थी। पर आप तो शान्त संतुलित थे पता नहीं मुझे कैसे आप यह सब सहन करते थे, परन्तु मैं तो आपको ‘बरगद‘ की संज्ञा देती थी, जो जीवन के हर मौसम खुद ही सहन करता है, परन्तु अपनी शरण में आने वाले की रक्षा करता है।

अंकल, हमारी जाति में पढ़े लिखे लड़के कम थे, मेरी मम्मी बहुत परेशान रहती थीं, परन्तु आपके प्रयास से एक परिवार मिल गया। मेरी बुआ, मौसी, ताई, चाची रूढ़िवादी थीं। मंगल-कार्यों में विधवा तो क्या विधुर की उपस्थिति भी अपशकुन मानतीं थीं, मम्मी-पापा व मैं उन्हें समझा कर हार गए। मेरे विवाह में आप दूर से ही सब जिम्मेदारी संभालते रहे।‘‘कन्यादान‘‘ का लिफाफा देने फेरों के समय भी नहीं आए, किसी मित्र के साथ भिजवा दिया एवं मेरी विदा के समय भी दूर से ही आंसू बहाते रहे। हमारा समाज कितना संकीर्ण है, यह मुझे विवाह में ही पता चल पाया।

अंकल, अपने जीवन साथी अजय से जब मैंने अपने जीवन में आपके योगदान की चर्चा की तो वे भी आपसे बहुत प्रभावित हुए थे। ससुराल में पर्दा-प्रथा थी। अम्मा चाहती थीं कि मैं स्कूल तो दूर घर पर भी ट्यूशन नहीं लूं। मेरी शिक्षा को जंग लग रहा था। आप को अपनी समस्या बतलाई तो आपने मेरे पति अजय से बात की, पर मातृभक्त श्रवण कुमार ने अपनी असमर्थता स्पष्ट कर दी। आप हारे नहीं, मेरी अम्माजी से मिलने आए एवं पता नहीं आपके कहने का ढ़ंग कैसा था कि अम्माजी मान गई, आज मैं स्कूल में अध्यापिका हूॅ तो आपके प्रयासों से ही एवं गत वर्ष शिक्षक दिवस 5 सितम्बर को जब मुझे जिले की श्रेष्ठ शिक्षिका का सम्मान जिलाधीश से मिला, तो समारोह में मैंने देखा कि मुझे सम्मान पुरस्कार मिलते समय दर्शक दीर्घा में पीछे की पंक्ति में अपने आंसू पोछ रहे थे। मेरे जीवन का गिलास खाली नहीं, परन्तु छलक रहा था।

अंकल, मेरी जीवन यात्रा में आपके योगदान से मैं कई मील के पत्थर स्थापित करती रही, परन्तु दो माह पूर्व जो आपने किया यह तो मेरे जीवन के लिए अमूल्य निधि है। अम्माजी ने मेरी ‘गुड न्यूज‘ सुनकर सोनोग्राफी करवाई एवं कन्या भ्रूण की पुष्टि होने पर एबोर्शन के लिए डाॅक्टर से तारीख भी ले ली। संकटमोचन के समान आप फिर मेरी ससुराल में प्रकट हुए एवं साम दाम दंड भेद के सभी हथियारों से मुझे मातृत्व सुख का वरदान भी दिया एवं अजन्मी कन्या की हत्या के पाप से भी हम सबको बचाया। ‘गुड न्यूज‘ जो ‘बेड न्यूज‘ बनने वाली थी को ‘गुड न्यूज‘ ही रहने दिया। मैं व अजय तो आपके चिरऋृणी हो ही गए हैं।

अंकल, ममता बहन भी अब ससुराल चली गई हैं। आप बिलकुल अकेले। मैं व अजय इस वृद्धावस्था में आप की सेवा करना चाहते हैं। अम्माजी ने भी अनुमति दे दी है। आप आत्मसम्मानी हैं, परन्तु आप ने ही कहा था, ‘‘ममता से अधिक हक मुझ पर आकांक्षा का है।‘‘ अपनी बेटी आकांक्षा को आप निराश मत करिएगा। प्लीज अंकल डाॅक्टर ने मुझे बेड रेस्ट बता रखा है, अगले सप्ताह अजय आपके पास आ रहें हैं। ट्रक की बुकिंग करवा ली है। अगले सप्ताह मैं अपने घर में आपका स्वागत करूंगी। प्लीज, अंकल मना मत करिएगा। शेष मिलने पर। सादर

आपकी बेटी – आकांक्षा

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी

One thought on “पत्रात्मक कहानी : खाली नहीं, छलकता गिलास

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    प्रेरक कहानी
    उम्दा लेखन

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