उफ् ये गोरा रंग !
मेरी शॉप पर एक लड़की कभी कभी कपडे लेने आती है उम्र होगी कोई 20-22 साल की हंसमुख सी, शायद किसी कंपनी में जॉब करती है। वैसे नैन नक़्श तो ठीक है पर त्वचा का रंग सांवला है,आज वह कई महीनो बाद आई थी।
मैंने उसके चेहरे को देखा तो उसका चेहरा जगह जगह से लाल हो रहा था जैसे एलर्जी हो गई हो, जब मैंने इसका कारण पूछा तो उसने दुखी होके बताया की उसकी उसकी सगाई है अगले महीने और वह अपने सांवले रंग को गोरा करना चाहती थी ताकि और सगाई में और सुंदर दिखे।
उसने अखवार में एक ऐड देखा था जिसमे 15दिनों में गोरा करने का दावा किया गया था, उसने बताया की दवाई की कीमत 1490 रूपये थी।दवाई मंगा के जब उसने दूसरी बार लगाया तो चेहरे पर लाल लाल निशान आ गए और त्वचा फटने लगी और चेहरा गोरा होने की वजाय और बेकार हो गया।
यह तो हुई एक लड़की की कहानी परन्तु देश की 90% महिलाओ की समस्या यही है की वे कैसे भी कर के गोरी होना चाहती है,देश में काले या सांवले रंग को लेके कितनी हीनता है इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है की भारत में हर टीवी चैनल्स और अखबारो में बड़े बड़े विज्ञापन जारी किये जाते हैं जिसमे सांवले / काले रंग से छुटकारा देके गोरे होने का दावा किया जाता है।हर लड़की गोरी होना चाहती है,अधिकतर माताएँ बचपन से ही अपनी बेटी को गोरी बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के तिकड़म करती है।
भारत में काला रंग को अभिशप्त मानने की मानसिकता है, काला या सांवला रंग हीनता की निशानी है। सुंदरता का पैमाना गोरा रंग है, स्त्रियों को हमेशा गोरा ही स्वीकार किया गया है।
यदि आप पौराणिक पात्रो पर नजर डालेंगे तो स्त्रियां गोरी ही पूजनीय हैं, गोरा रंग सौम्यता की निशानी माना गया है। दुर्गा से लेके लक्ष्मी, पार्वती सभी गोरी है। जबकि एक देवी काली है जिसे काली माता कह दिया गया, यानि उसके रंग के आधार पर ही उसका नामकरण कर दिया ताकि जब भी संबोधित किया जाए तो उसका रंग पहले ही ज्ञात हो जाए। फिर काली माता का नाम के अनुसार रूप भी दे दिया, जीभ निकली हुई, नरमुंड धारण किये, वस्त्रहीन, केश बिखरे, भयानक रूप ताकि काले की भयानकता प्रकट हो सके जबकि ‘गोरी माई’ रंग गोरा होने के कारण सौम्य और सुंदर रहती हैं।
अति प्राचीन काल से ही काले रंग के प्रति कैसी घृणा व्यक्ति की गई है इसका उदहारण ऋग्वेद में ही मिल जाता है। ऋग्वेद में जगह जगह काले लोगो को मारने का वर्णन है, कृष्ण नाम के असुर की काली खाल उतार के इंद्र अंशुमती के तट पर उसे जला के मारता है। काले शंबर के 99 नगर नष्ट कर देता है इंद्र।
जब अंग्रेज आये तो भारतीय लोगो में अपने काले रंग को लेके और हीनता बैठ गई, तभी आज भी हम गोरे अंग्रेजो के प्रति दीवानगी है की हर लड़का ‘गोरी मेम’ से ही शादी करना चाहता है।
भारत में सौंदर्य प्रसाधनो का व्यापर लगभग 5.4 अरब डॉलर है जो प्रत्येक वर्ष 12% के हिसाब से बढ़ रहा है। हजारो विदेशी कंपनिया अपने उत्पादन इस दावे के साथ बेंच रही है कि उनका उत्पादन काले रंग को गोरा कर देगा। ये कंपनिया विज्ञापन इस तरह से दिखाती है कि यदि लड़की काली है तो उसका जीवन बेकार है, उसकी शादी नहीं होती, अच्छा वर नहीं मिलता, नौकरी नहीं लगती, कोई पसन्द नहीं करता … पर क्रीम लगते ही कुछ दिनों में लड़की गोरी हो जाती है और उसका सब कुछ बदल जाता है नौकरी भी लग जाती है और बॉयफ्रेंड भी मिल जाता है।
ये कंपनिया जानती हैं कि भारतीय लोगो में कितनी हीनता है काले रंग को लेके, अतः नए नए तरीके से भावनाओ को भुनाती है। गोरे रंग के प्रति जो श्रेष्ठता की मानसिकता है उसका भली प्रकार से दोहन किया जा रहा है गोरा करने की कम्पनियो द्वारा।पहले गोरे होने की सनक केवल स्त्रियों तक थी तो कम्पनियो का ध्यान स्त्रियों तक ही था पर पिछले कुछ वर्षो से अब पुरुष भी गोरा होने की ललक करने लगे।कम्पनियो ने अब पुरुषो में ‘गोरा’ होगा तभी सफल होगा की भावना पैदा कर दी है, अतः कंपनिया ‘ फेयर एंड हैंडसम ‘ का जबरदस्त प्रचार करने लगी हैं।
यदि क्रीम से ही किसी का काला रंग गोरा होता तो अफ़्रीकी देशो में कोई काला न होता, दक्षिण भारत में सभी गोरे होते। अत: मेरी उन सभी महिलाओं और पुरुषो से निवेदन है की अपनी विवेक से काम लें और कम्पनियो के प्रचार की मानसिकता में न आएं,गोरे रंग की श्रेष्ठता की मानसिकता से बाहर निकलें। आप सांवले /काले रंग के होके भी श्रेष्ठ हैं, श्रेष्ठ कर्म कीजिये नैतिक बनिए उसी से आप सफल कहलायेंगे।
सोचिये यदि जो पैसा हम गोरे होने पर बर्बाद करते हैं ( लगभग 5.4 अरब डॉलर) उसी पैसे से कितने ही देश के अच्छे काम किये जा सकते हैं।
– केशव (संजय)
लेख बहुत अच्छा लगा . पहली दफा इस टॉपिक पे बात पडी है . अगर भारती गोरे बनना चाहते हैं तो वेस्ट इंडियन अफ्रीकन लोग कहाँ जाएँ . इसी टॉपिक से मिलता जुलता टॉपिक है गंजेपन का इलाज जो बिलकुल मुर्खता है, पता नहीं लोग बाल उगाने के लिए कितने पैसे खर्च देते हैं . इंग्लैण्ड की राणी के पोते गंजे हैं, क्या उन के पास पैसों की कमी है ? लोग खामखाह अपना पैसा बर्बाद करते हैं .
सही बात है भाई साहब. जिसका कोई इलाज ही संभव नहीं है उसे स्वीकार कर लेना चाहिए. मेरे बाल भी बहुत उड़ गए हैं और सफ़ेद हो गए हैं. पर इस बात का मुझे कोई खेद नहीं है. मैं पत्नी से काली मेंहदी लगवाकर बाल काले जरुर करवा लेता हूँ लेकिन इसके आलावा एक पैसा भी इस पर खर्च नहीं करता.
लेख बहुत अच्छा लगा . पहली दफा इस टॉपिक पे बात पडी है . अगर भारती गोरे बनना चाहते हैं तो वेस्ट इंडियन अफ्रीकन लोग कहाँ जाएँ . इसी टॉपिक से मिलता जुलता टॉपिक है गंजेपन का इलाज जो बिलकुल मुर्खता है, पता नहीं लोग बाल उगाने के लिए कितने पैसे खर्च देते हैं . इंग्लैण्ड की राणी के पोते गंजे हैं, क्या उन के पास पैसों की कमी है ? लोग खामखाह अपना पैसा बर्बाद करते हैं .
बहुत अच्छा लेख ! गोरे रंग के प्रति यह आकर्षण कोरी मूर्खता है.