आईये जागरूक हों मान्यताओं से
सुबह जैसे ही मार्किट के लिए घर से निकला की तभी पडोसी जो की बाहर बैठा अख़बार पढ़ रहा था जोर से छींक उठा ।
उसकी छींक सुन माँ ने मुझे रोकते हुए कहा की अभी छींक दिया गया है , घर से निकलते वक्त अगर छींक आ जाए तो अशुभ होता है और मैं थोड़ी देर बाद घर से निकलूं ।
मैं हँस दिया और बोला की ऐसा कुछ नहीं , छींक आना शरीर की स्वभाविक प्रक्रिया है इसका शुभ अशुभ से कोई लेना देना नहीं ।मैंने बाइक स्टार्ट की और चल दिया , तीन घण्टे बाद वापस आके मैंने जब बोला की क्या अशुभ हुआ मेरे साथ ?
तब माँ बोली ऐसा माना जाता है बड़े बुजुर्गो द्वारा ।
मैंने कहा कि क्या जरुरी है कि जो बड़े बुजुर्ग मानते रहे हो वह सही हो ? बड़े बुजुर्गो ने कहा और हमने बिना तर्क किये बिना विचार किये मान लिया … खाली बर्तन का रस्ते में देखना, बिल्ली रास्ता काटना आदि न जाने कितने ही अन्धविश्वास है जो सिर्फ बुजुर्गो के कहने पर मानते आ रहें हैं जबकि वास्तविकता यह है की इन अंधविश्वासों से कुछ फर्क नहीं पड़ता , हाँ समय और दिमाग जरूर खराब होता है ।
लोगो के घरो / दुकानों के आगे मैंने नींबू मिर्च लटकते हुए देखा है , यह एक प्रकार का टोटका होता है जिसकी मान्यता यह है की यह बुरी नजर से बचाता है ।नींबू मिर्च लटकाने से घर में सुख सम्पत्ति आती है और दुकान/ ऑफिस में लटकाने से व्यापर में वृद्धि होती है ।परन्तु यदि ऐसा होता तो एक भी घर में लड़ाई नहीं होती , अलगाव नहीं होता, तलाक नहीं होते ।किसी का भी व्यापर नहीं डूबता , हर व्यक्ति व्यापार में सफल होता ।
चार साल पहले मैंने अपनी बाइक खरीदी थी , उस समय पितृपक्ष चल रहे थे मैने उन्ही दिनों बाइक लेने का निस्चय किया वह भी शनिवार को ।जिसने भी सुना उनमे से अधिकतर लोगो ने यही कहा की मैंने गलत किया पहले तो पितृपक्ष में कोई नई चीज नहीं खरीदनी चाहिए दूसरे शनिवार को लोहा नहीं खरीदना चाहिए ।मैंने दोनों काम एक साथ कर दिया था ,घरवालो को आशंका रहती की कुछ बुरा न हो जाये यानि कंही एक्सिडेंट न हो जाए पर चार साल से अधिक समय हो गया बाइक एक दम सही है और मुझे कभी एक खरोंच तक नहीं लगी उस बाइक से ।
अन्धविश्वास , शकुन , अपशकुन एक ऐसी धारणा होती है जो व्यक्ति के खुद पर बहुत ही कम आजमाई गई होती है बस किसी के द्वारा कही या परम्परागत मानिसकता के सहारे चलती जाती है ।गाँव में एक दफा शादी में जाना हुआ था ,वंहा पर देखा की जिस घर में शादी थी वंहा की स्त्रियों ने घर की दीवार पर रंग से एक बिल्ली बनाइ हुई थी जिसको जालीदार टोकरी से बंद किय हुआ था । पूछने पर पता चला की इस तरह की तस्वीर शादी वाले घर में बनाने की प्रथा है वंहा कारण क्या है यह किसी को नहीं पता ।
जब मैंने उस बिल्ली वाले चित्र को गौर से देखा तो समझ आया की पुराने समय में जब घरो में दरवाजे नहीं होते थे तब बिल्ली या ऐसे जानवर घरो में आसानी से घुस जाते थे । चुकी शादी ब्याह में दूध /दही /घी आदि का सामान अधिक होता है और उसे ख़राब करने में बिल्ली का सबसे अधिक भय रहता है इसलिए किसी महिला ने बिल्ली को टोकरी में बंद कर दिया होगा और खाना होने से बच गया होगा और इसे शुभ मान लिया होगा । बाद में जब उसकी बहु ने या किसी और ने ऐसा किया होगा परन्तु बिल्ली नहीं मिली होगी तो चित्र हि बना डाला होगा । इस प्रकार पीढ़ी दर पीढ़ी समय बीतने पर यह प्रथा बन गई होगी ।
इसी प्रकार कई ऐसी मान्यताएं ,शुकन , अपशकुन है जो हम केवल मानते चले आ रहें है बिना उस पर बिचार किये हुए , अब जरुरत है जागरूक होने की ।
-केशव (संजय)
लेख अच्छा लगा . पता नहीं भारत के लोग ऐसी मानताओं से कब बाहर आयेंगे . एक दिन पड़ा कि किसी लड़की ने अपनि जीभ काट कर किसी देवी के चरणों में अर्पण कर दी और ऐसी लड़कि ने यह संस्कार कहीं से तो लिए ही होंगे .जब हम सकूल में पड़ते थे तो रास्ते में टोने किये होते थे और हम बूटों से फोड़ देते थे . आज टीवी पर भी अन्ध्विशावास लोगों को परोसा जाता है ,मेरा तो दिमाग पजल्ड हो जाता है ऐसी बातों को देखते हुए .