कविता

वाह मेरे नेता जी

आज के परिदृश्य मे “वाह मेरे नेता जी” पर मेरी रचना जो जनता और समाज को लगातार धोखा दे रहे है,आप सब की प्रतिक्रिया और आशिर्वाद का मुझे इंतजार रहेगा-

अब इस गरीब के घर भी सारे नेता आने लगे है
मेरे झोपड़ी मे बैठकर सुखी रोटीया खाने लगे है
कल तक इनसे मिलना भगवान से कम नही था
मरता रहा भुखा पेट मै मगर इनको गम़ नही था
मेरे जख्मो पर ये सियासतो की रोटी सेकते रहे
माल खुद चबाते रहे जनता को हड्डी फेकते रहे
कमाई हमारी थी खुन की तरह डकारते पीते रहे
रोती रही है जनता इनके अपने मौज में जीते रहे
कुर्सी की चाहत ये अपने नजरो में सजाये बैठे है
कल तलक जो दुश्मन थे आज भाई बनाये बैठे है
गठबंधनो के नामो पर ये जनता को छलते रहे है
सरकार बनने के बाद हम सिर्फ हाथ मलते रहे है
ऐ खुदा अब आप ही बताये कौन सी ये विरादरी
पाँच साल रहे गायब अब लगाते है रोज हाजिरी
दमदार वादे सलोने सपने मुझको दिखाने लगे है
चुनावी मौसम मे गरीबों का मसीहा बताने लगे है
नेताजी मुझसे कहते मेरा दुख अब जाने वाला है
मैं अचम्भित हूँ क्या फिर से चुनाव आने वाला है !!
साहित्य सेवक-
बेख़बर देहलवी
सम्पर्क-9958775141-8010690966

बेख़बर देहलवी

नाम-विनोद कुमार गुप्ता साहित्यिक नाम- बेख़बर देहलवी लेखन-गीत,गजल,कविता और सामाजिक लेख विधा-श्रंगार, वियोग, ओज उपलब्धि-गगन स्वर हिन्दी सम्मान 2014 हीयूमिनिटी अचीवर्स अवार्ड 2016 पूरे भारत मे लगभग 500 कविताओं और लेख का प्रकाशन