कविता

कविता : आ जाओ तुम

रात्रि का अर्द्धप्रहर
नींद है कोसों दूर नयन से
यही आभास होता है
तुम कही पास ही हो मेरे
आ जाओ तुम
फिर से एक बार
ऐसे ही जैसे
अक्सर आ जाया करते थे
एक मौन स्वर पे मेरे।
कितना खुश हो जाती मैं
और फिर थाम के
हाथों को तुम्हारे
कस लेती हाथों में अपने
तुम्हें रोकने के लिए
हठ करती कितना
और फिर मनुहार तुम्हारा
बहलाना मुझे कभी
बातों से अपने तो
डराना कभी दुनिया से
लेकिन मेरा बेचैन हृदय
कहाँ समझता दुनियादारी
नही मानता बातें तुम्हारी
कितना मुश्किल होता
तुम्हारा हाथ छुड़ाना
मेरे आंसुओं को रोक पाना
आ जाओ तुम
एक बार वैसे ही
मैं फिर से हूँ चाहती
थामना हाथ तुम्हारा
फिर वही रोकने की ज़िद
और बहलाना तुम्हारा
फिर से चाहती हूँ रोना
तुमसे लिपट के
हिचकियों में सिसक के
दिल का गुब्बार
कुछ तो हो कम
कुछ तो पिघले
तन्हाइयां मेरी
फिर से जी लूँ
मैं उस पल को
ना जाने फिर मैं
हूँ ना कल को।।

   नाम-सुमन शर्मा

सुमन शर्मा

नाम-सुमन शर्मा पता-554/1602,गली न0-8 पवनपुरी,आलमबाग, लखनऊ उत्तर प्रदेश। पिन न0-226005 सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें- शब्दगंगा, शब्द अनुराग सम्मान - शब्द गंगा सम्मान काव्य गौरव सम्मान Email- rajuraman99@gmail.com