गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

हमारे दर्दे दिल की अब दवा कोई नहीं करता।
वफ़ा की बात करते सब वफ़ा कोई नहीं करता ।

जवानी चार दिन की है कमा लो खूब दौलत तुम
नहीं पैसा अगर तो परवा कोई नहीं करता ।

नए रिश्ते बनाने का चलन जोरों पे है साहिब
पुराने रिश्तों को फिर से नया कोई नहीं करता।

अगर साँसें सलामत हैं तो सब अपने ही अपने हैं
गए दुनिया से जो उनका पता कोई नहीं करता ।

मुझे मालूम है तुम भी जुदा हो जाओगे इक दिन
“धर्म” टूटे घरो में तो रहा कोई नहीं करता ।

— धर्म पाण्डेय

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

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