कविता

मुक्त काव्य : ऐसा चेहरा

बंदगी करता रहा
उमर भर का आदमी ठहरा
चलता रहा जुबां पर लगा पहरा
हिल गए ये होठ यूं ही एक दिन
जख्म दे रहा इंसान ही इंसान को गहरा॥
कैसी है सोच
आदमी का चेहरा चेहरा
हर वक्त गिराता उठाता सेहरा
बदनशीबी तो देखों आदमी के चंगुल में आदमी
अब तो नित नए आतंक दिखाता है बन मोहरा॥

महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on “मुक्त काव्य : ऐसा चेहरा

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर जी

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