बाल कविता

दादी बूढी दादा बूढे

दादी बूढी दादा बूढे
दोनो के अब डंडे सहारे
नानी बूढी नाना बूढे
दोनो के ऑखो पर चश्मा लगे
मै तो ठहरा बच्चा नदान
चूरा देता दोनो का समान
दादी ढूढे दादा ढूढे
मिल न पाता किसी किनारे
नानी ढूढे नाना ढूढे
हो कर परेशान दोनो बैठे
पापा आते डॉट लगाते
लेकिन मै अपने काम से
बाज नही आते
मम्मी आती प्यार से पूछती
बोलो बेटा कहॉ रखे हो
दादा दादी का डंडा
नाना नानी का चश्मा
उसके बिन कैसे चल सकते है
तेरे पास नही आ सकते है
दे दो मेरे प्यारे बच्चे
तुम तो हो सबके दूलारे
झट से निकाल लाया डंडा
दादा दादी को थमाया नन्हा
नाना नानी का भी चश्मा
झट ले जा पहना दिया मुन्ना|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४