ग़ज़ल
मेरी सांसों मे समाए हुए से लगते हो
फिर भी तुम मुझे पराए से लगते हो
घुली है आँखों में मेरी जो इक तस्वीर
तुम उसी तस्वीर के हमसाये से लगते हो
जो ख्वाबो में मेरे नज़र आता था अकसर
तुम उन्हीं ख्वाबो से निकल आए से लगते हो
जो मेरी हर नादानी पे मंद मंद मुस्कुराता है
तुम मेरी उन्ही नादानीयों मैं समाए से लगते हो
आँखे मेरी समझ जाती हैं तेरे दिल का हाल
तुम मुझे अपने दिल में बसाए हुए से लगते हो
— प्रिया वच्छानी
Vaah