बालगीत – खुद सब कुछ जानेंगे
अबकी मानसून में कोई, कविता नहीं लिखेंगे
केवल बारिश मे भीगेंगे, छप्पा – छईं करेंगे
रेन कोट भी न पहनेंगे, बूट नहीं पहनेंगे
हाथों मे बारिश का पानी, रोकेंगे, मचलेंगे
आसमान मे मुंह करके, बादल से बात करेंगे
पाँव पड़ेगा गड्ढे मे तो, कीचड़ मे फिसलेंगे
मम्मी – पापा की डॉटों का, बुरा नहीं मानेंगे
कविता पढ़कर नहीं, भीगकर खुद सब कुछ जानेंगे
— अरविन्द कुमार साहू
प्रिय अरविंद भाई जी, खुद भीगकर जानना ही बेहतर है. सुंदर व सार्थक रचना के लिए आभार.
प्रिय अरविंद भाई जी, खुद भीगकर जानना ही बेहतर है. सुंदर व सार्थक रचना के लिए आभार.