गीत/नवगीत

गीत : NSG की हार पर ग़द्दार

(NSG में भारत की असफलता पर खुशियाँ मनाते छद्म नेताओं के बयानों पर देश को जगाती मेरी नई कविता)

पुनः चाइना छल कर बैठा, भारत की इच्छाओं से
सन् बासठ से अड़ा हुआ है, हटा नही है राहों से

भारत का प्रधान जूझा था, पूरा ज़ोर लगाया था
एन एस जी के समूह पर दावा खूब दिखाया था

लेकिन जटिल मानदंडों के आगे सपना टूट गया
सपना क्या टूटा पूरा भारत मोदी से रूठ गया

हल्ला मचा हुआ दिल्ली में, मोदी चढ़े निशाने पर
हुआ अमादा ‘आम आदमी’, यूँ ही शोर मचाने पर

कौओं के मुख से देखो फिर कड़वे राग निकल आये
वामपंथ की बाँबी में से काले नाग निकल आये

भारत की इस नाकामी के दाग जड़े हैं मोदी पर
जैसे ही मौका आया सब टूट पड़े हैं मोदी पर

कोई खिल्ली उड़ा रहा है सूट बूट के धागों की
कोई खुशियाँ मना रहा है बुझते हुए चिराग़ों की

राष्ट्रनीति पर राजनीति का हमलावर अरविंद हुआ
अंधा है मोदी विरोध में, उसे मोदियाबिंद हुआ

ये मोदी विरोध के चक्कर में ऐसे बौराये हैं
उधर मनाता चीन ख़ुशी, ये इधर खूब हर्षाये हैं

शत्रु भले ही छुरा पीठ में फिर भारत के मार गया
इनको तो बस यही ख़ुशी है, देखो मोदी हार गया

ये निर्लज्ज सियासत के विष भरे नतीजे लगते है
माओवादी गुंडों के औलाद-भतीजे लगते हैं

समय नहीं है ज़ख्मों पर निंदा का नमक लगाने का
वक्त आ गया है भारत को आज एक हो जाने का

सबक सिखा दो चतुर चीन को, अब देशी औजारों से
मार भगा दो चीनी चीज़ें भारत के बाज़ारों से

दो दिन में औकात बता दो, चार फुटी छल छंदों को
फ़ौरन मोटा ताला मारो व्यापारिक अनुबंधों को

कवि गौरव् चौहान कहे, बांका भी बाल नहीं होगा
कुछ व्यंजन घट जाने भर से सूना थाल नही होगा

नूडल, मंचूरियन, भाव में दो कौड़ी की कर देंगे
बीजिंग वालों के मुँह में हम चना चबैना भर देंगे

— कवि गौरव चौहान