गीत/नवगीत

देख रहा हूँ

देख रहा हूँ जश्न मनाते देश विरोधी नारो पर
देख रहा हूँ अभिनन्दन की माला उन गद्दारो पर

देख रहा हूँ मांग रहे वो भारत भू की बर्बादी
देख रहा हूँ कैसी है ये अभिव्यक्ति की आज़ादी
देख रहा हूँ कैसे भेड़ सियारो ने भी रंग बदले
देख रहा हूँ दौड़ रहे है कौन उसे आँचल ढक ले
देख रहा हूँ गद्दारो का महिमा मंडन भी होते
देख रहा हूँ काशी रोती और वृन्दावन भी रोते
देख रहा हूँ नाग नथैया की धरती पे नागो को
देख रहा हूँ आग लगाते आँगन पड़े चिरागों को
देख रहा हूँ प्यार बरसते भारत के हत्यारो पर…….देख रहा हूँ जश्न

देख रहा हूँ लोकतन्त्र के इक खम्बे की मक्कारी
देख रहा हूँ बिके ज़मीरों वालो की भी गद्दारी
देख रहा हूँ नेताओ के ओछे बोल बयानो को
देख रहा हूँ अपमानित होते उन वीर जवानो को
देख रहा हूँ भगत सिंह के घायल सब अरमानो को
देख रहा हूँ जाफ़र जैसे ढेरो नमक हरामों को
देख रहा हूँ खुल के कहते भारत से आज़ादी हो
देख रहा हूँ खुल के कहते बाटेंगे हम घाटी को
देख रहा हूँ अमर शहीदो के स्मारक टूट रहे
देख रहा हूँ भारत को भारत के बेटे लूट रहे
देख रहा हूँ नजर है मेरी सब चैनल अखबारो पर ……देख रहा हूँ जश्न

देख रहा हूँ भटक रही है भारत भू की तरुणाई
देख रहा हूँ सिसक रही है भारत माँ भी घबराई
देख रहा हूँ सर्पो के पाशो मे चन्दन वन रोते
देख रहा हूँ अपराधी का भी महिमामंडन होते
देख रहा हूँ सेना पर भी हमला करते लोगो को
देख रहा हूँ फैल रहे इन कर्क सरीखे रोगो को
देख रहा हूँ देश प्रेम पर राजनीति अब भारी है
देख रहा हूँ देश तोड़ने की कोशिश भी जारी है
देख रहा हूँ विद्यालय के आँगन यहाँ जहर बोते
देख रहा हूँ कुछ शिक्षक को अपनी मर्यादा खोते
देख रहा हूँ दाग लगाते सेना के किरदारो पर ……..देख रहा हूँ जश्न

देख रहा हूँ नमक हरामों को भारत मे ही पलते
देख रहा हूँ संस्कार की होली रोज यहाँ जलते
देख रहा हूँ भाँति भाँति के नित नए खेल तमाशो को
देख रहा हूँ खेल बना डाला है सबने लाशों को
देख रहा हूँ गीदड़ लोमड़ और सियार मिले फिरते
देख रहा हूँ साँप नेवले मिल कर वार यहाँ करते
देख रहा हूँ शेर के आने से सारे भयभीत हुए
देख रहा हूँ दुश्मन भी अब उनके मन के मीत हुए
देख रहा हूँ रास नहीं आती विकास वाली बातें
देख रहा हूँ दुश्मन के घर जा उनके तलवे चाटे
देख रहा हूँ चोट करारी को अपने संस्कारो पर …..देख रहा हूँ जश्न

देख रहा हूँ सेना को है पहली बारी छूट मिली
देख रहा हूँ पत्थरबाजो को बदले मे शूट मिली
देख रहा हूँ दिल्ली ने आदेश दिया है द्वंद करो
देख रहा हूँ आतंकी के सभी समर्थक बंद करो
देख रहा हूँ दिल्ली बोली थोड़ा सा अब कष्ट करो
देख रहा हूँ बोले उनके सभी ठिकाने नष्ट करो
देख रहा हूँ सैनिक अपने अब न स्वयं को रोक रहे
देख रहा हूँ सैनिक उनको खुल्लम खुल्ला ठोक रहे
देख रहा हूँ देश प्रेम की जग मे होती रीत यही
देख रहा हूँ कहीं भय बिन होती अब तो प्रीत नहीं

देख रहा हूँ भीड़ जनांजों ,पर है और मजारों पर …….देख रहा हूँ जश्न

— मनोज “मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.

2 thoughts on “देख रहा हूँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार गीत !

    • मनोज डागा

      हृदय से आभार

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