गीत : ग़द्दारों को खत्म करो
(कश्मीर के ताज़ा हालात,तेज होती राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर मोदी सरकार को सचेत करती मेरी नई कविता)
कैसी ये सरकार चलाई, कैसी ज़िम्मेदारी है?
मोदी भी मनमोहन निकले, मौन निरंतर जारी है
राष्ट्रवाद के प्रखर सूर्य पर, ग्रहण लगा है वोटों का
नहीं ध्यान है भारत माँ पर लगती गहरी चोटों का
रक्त सने घायल शरीर को केवल झंडू बाम मिला
दो सालों की भाग दौड़ का ज़ीरो ही परिणाम मिला
नही रुके आतंकी हमले, काश्मीर में दंगा है
दुष्टों के हाथों में अब भी जलता हुआ तिरंगा है
सेनाओं के हाथ बंधे हैं या सब तेवर ठन्डे हैं
खुले आम क्यों हाथों में ये काले अरबी झंडे हैं
भीड़ करे सेना पे हमला, कैसे चुप रह जाते हो
पत्थरबाजों को दिल पर पत्थर रखके सह जाते हो
कहाँ गयी वो राष्ट्र कल्पना, सावरकर के पूतों की
क्यों हालत खराब हो बैठी, सरकारी बलबूतों की
क्यों सियार के लक्षण आये, शेर धुरंदर मोदी में
क्यों बैठे हैं वीर नरिंदर महबूबा की गोदी में
आतंकी शहीद का दर्जा पाते हैं, चौराहों पर
फूल चढ़े हैं ऐसे जैसे चढ़ते हैं दरगाहों पर
तुम तो कहते थे, भारत की सारी दशा सुधारेंगे
आते ही हम ढूंढ़ ढूंढ़ के गद्दारों को मारेंगे
लेकिन जब से आये हो खतरों पे खतरे डोल रहे
खुले आम खालिद जैसे, गद्दारी भाषा बोल रहे
लगता है भारत भविष्य पर संकट आने वाले हैं
यहाँ करोड़ों मुस्लिम ज़ाकिर जैसो के मतवाले हैं
गैर मुस्लिमों से नफरत की खेती बढ़ने वाली है
शरिया के चक्कर में सब की मुंडी कटने वाली है
कवि गौरव चौहान कहे मज़हब के ऊपर देश करो
आँख उठा ना पाये कोई, कुछ ऐसा परिवेश करो
आतंकी को दफ़न नहीं, कूड़े करकट में भस्म करो
गद्दारों को मौत मिलेगी, ये कानूनी रस्म करो
कब तक भारत माता जय के जुमलों से बहलाओगे
मोदी जी कुछ काम करो, वर्ना कायर कहलाओगे
— कवि गौरव चौहान