गुस्ताख दिल …
ऐ दिल
सीख ले ज़माने में
हालात के हिसाब से ढलना
कि तेरे शौक और फरमाइशें
मेरे तो बस के नहीं हैं ।
जो तुझे चाहे उसकी तुझे कदर नहीं
दौड़ता है बेसबब उन गलियों में
जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं ।।
ऐ दिल
जो तू करता है वफ़ा उनसे
जिन्होंने वफ़ा का मतलब भी न जाना
और लड़ता है मुझसे ही उनके लिए
जिनकी नज़रों में मेरा तो क्या
तेरा भी तो कोई मोल नहीं
उनसे ही तू अपनापन निभाता
मुझसे तो तेरा दर्द भी न देखा जाता
और मुझे ही तू उनके हक़ में फैसला सुनाता।।
ऐ दिल
होंगे वो तेरे अपने तेरी नज़रों में
पर उनकी नज़र में तू कुछ भी नहीं
तुझे बस कठपुतली बनाकर
मेरे ही खिलाफ ये उनकी साज़िश है
बिछा दी है शतरंज सी बिसात
और तुम हो रहे हो इस्तेमाल मोहरे के जैसे
देख लेना अंत में तेरी हार ही होनी है
फिर न आना मेरे पास लेकर अपने जख्म
न बहाना अपने दर्द को मेरे नयनों से
न करना मुझसे कोई शिकायत तुम
क्योंकि राह बर्बादी की तूने खुद चुनी है ।।
— प्रवीन मलिक