कविता

मन

अजब सी हलचल है
ये मन भी चंचल है
घर बैठे ही कर लेता
पूरी दूनियॉ की सैर है
ना माने मेरी बात
देता सबको मात
क्या करे क्या ना करे
यही सोच सोच कर
कर देता सबको तबाह है|
     निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

One thought on “मन

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

Comments are closed.