ग़ज़ल : मुस्कुराने की अदा
मुस्कुराना इक अदा है मुस्कुराते जाइए
अपने संग संग औरों के भी गम भुलाते जाईये |
बहुत आसां है यहाँ पर दर्द देना दूसरों को,
दूसरों के दर्द संग हमदर्द बनते जाईये |
कौन समझेगा यहाँ पर बेजुबां की चीख को,
हाल अपने दिल का औरों को बताते जाईये |
क्यूँ भला दिल को जलायें औरों का सुख देखकर,
उनके सुख पर अपने भी हक को जताते जाईये |
जिन्दगी जीना कठिन और मौत सस्ती है यहाँ,
क्यूँ न असंभव को भी संभव बनाते जाईये |
क्या मिलेगा दूसरों के फटे में अड़ा के टांग,
अपने गिरेबान में भी झांकते तो जाईये |
उम्र की दहलीज पार हो रही है वक्त के,
वक्त के दामन पे निशां अपने छोड़े जाईये |
दूसरों के कंधे पर बन्दूक रखते किसलिए,
अपनी गलती भी कभी हुजूर मान जाईये |
सीख लेंगे हम भी उनसे दिल जलाने की अदा,
हौले से फिर मुस्कुराकर दिल जलाते जाईये |
क्या करेंगे मान्यवर तीरथ बरत जाकर भला
माँ पिता के चरणों में माथा टिकाते जाईये ||
— पूनम पाठक ‘पलक’