गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : मुस्कुराने की अदा

मुस्कुराना इक अदा है मुस्कुराते जाइए

अपने संग संग औरों के भी गम भुलाते जाईये |

बहुत आसां है यहाँ पर दर्द देना दूसरों को,

दूसरों के दर्द संग हमदर्द बनते जाईये |

कौन समझेगा यहाँ पर बेजुबां की चीख को,

हाल अपने दिल का औरों को बताते जाईये |

क्यूँ भला दिल को जलायें औरों का सुख देखकर,

उनके सुख पर अपने भी हक को जताते जाईये |

जिन्दगी जीना कठिन और मौत सस्ती है यहाँ,

क्यूँ न असंभव को भी संभव बनाते जाईये |

क्या मिलेगा दूसरों के फटे में अड़ा के टांग,

अपने गिरेबान में भी झांकते तो जाईये |

उम्र की दहलीज पार हो रही है वक्त के,

वक्त के दामन पे निशां अपने छोड़े जाईये |

दूसरों के कंधे पर बन्दूक रखते किसलिए,

अपनी गलती भी कभी हुजूर मान जाईये |

सीख लेंगे हम भी उनसे दिल जलाने की अदा,

हौले से फिर मुस्कुराकर दिल जलाते जाईये |

क्या करेंगे मान्यवर तीरथ बरत जाकर भला

माँ पिता के चरणों में माथा टिकाते जाईये ||

— पूनम पाठक ‘पलक’

 

पूनम पाठक

मैं पूनम पाठक एक हाउस वाइफ अपने पति व् दो बेटियों के साथ इंदौर में रहती हूँ | मेरा जन्मस्थान लखनऊ है , परन्तु शिक्षा दीक्षा यही इंदौर में हुई है | देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से मैंने " मास्टर ऑफ़ कॉमर्स " ( स्नातकोत्तर ) की डिग्री प्राप्त की है | इंदौर में ही एकाउंट्स ऑफिसर के जॉब में थी | परन्तु शादी के बाद बच्चों को उचित परवरिश व् सही मार्गदर्शन देने के लिए जॉब छोड़ दी थी| अब जबकि बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं तो अपने पुराने शौक लेखन से फिर दोस्ती कर ली है | मैं कविता , कहानी , हास्य व्यंग्य आदि विधाओं में लिखती हूँ |