मजदूर
मजदूर
मजदूर के पसीने से
लिखी जाती है इबारत विकास की
फिर भी रह जाता है अछूता
विकास से
सुबह से शाम तक
मेहनत करता मजदूर
नित नए सृजन करता है
और सजाता है देश को
मेहनत की खुशबू से
महकता बदन देता है गवाही
लहू का पसीना बनने की
मेहनत से दो वक्त की रोटी जुटाता
उम्रभर अभाव ग्रस्त रहकर
अपना पूरा परिवार पालता
जिंदगी की जदोजहत मे
जीने की प्रेरणा देता है मजदूर
लोग तो सब कुछ होते हुए भी
जीना नहीं चाहते
हार जाते हैं जीवन के उतार चढाव से
मजदूर तो मजदूरी मांगने मे भी कष्ट उठाता है
क्यूंकि सारा काम करवा कर भी
मालिक मोल भाव करता है मजदूर से
मेहनत की पूरी कमाई तक नहीं मिल पाती
कैसे इसके घर मे चूल्हा जलता है
कैसे इसके बच्चे पलते हैं
कौन सोचता है
राशन कार्ड बनवाने के लिए
दर दर धक्के खाता
अपनी पहचान साबित नहीं कर पाता
टूटी फूटी झोंपड़ी या तम्बू मे ही
गुजार लेता है सारी उम्र
कैसे वो भविष्य की योजना बनाये
जिसे दो वक्त की रोटी की चिंता है
बहुत आन्दोलन हुए मजदूर के लिए
कई संगठन भी है इसकी पैरवी करने के लिए
पर मजदूर तो वहीँ खड़ा है
क्या सभी दोखा कर रहे हैं
समाज हाथ से मेहनत करने वाले की
अनदेखी कर रहा है
मजदूर को भीख नहीं चाहिए
सृजन और निर्माण का भागिदार है
मजदूर
मिलना चाहिए इसे अपना हक़
वो क्यों अभाव मे जिए
जो देता है सबको सुविधाएँ