दोहा : त्रेता में कुंभज़ मिले
ज्ञान विभूषित गुरु कहाँ, खोजत फिरे दिनेश
त्रेता में कुंभज़ मिले, शिक्षक बने महेश
राम कथा कलि मल हरण, उपजा मन अनुराग
प्रेम भाव विह्वल हुए, उद्भित हुआ विराग
अहम ह्रदय में पालि के, मत जाओ गुरु पास
गुरू ज्ञान की ख़ान है शिष्य हृदय विश्वास
गुरु से गुण को लीजिए, छानि -छानि के ज्ञान
मन मंदिर में हरि बसे, प्रेम रतन रस ख़ान
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी