हाइकु
“आब” का मोती
सावन में सुहाए
धरा सजाए!
गर्दन रेती
कलमा याद न था
हैवानियत!
जल में वायु
पानी का बुलबुला
जैसे जीवन!
सावन आया
धरा की प्यास बुझी
उम्मीद हरी!
नभ ने भेजी
धरा को प्रेम लड़ी
वर्षा की झड़ी!
पंख पखेरू
पसार उड़ गया
पिंजड़ा छूटा!
#निवेदिता 25/7/2016