कविता

बुझदिल पड़ोसी

बड़ा बुझदिल पड़ोसी है नहीं सम्मान जो जाने
कायर की तरह भौके नहीं अरमान जो जाने
भरे नफरत सदा विषधर , दिखा जब सिंह धरती पे,
शावक बन गया बुझदिल दिखा जब सिंह का रुतबा
हमारी संस्कृति ऐसी की दुश्मन प्यार करते हैं
अगर अंतस की भाषा को – समझते काश ये जाहिल
धरा के धर्म को भूले बड़े काफ़िर थे वे गीदड़
समाया था ये भय उनमें, धरा का दूध भी पानी
दिया दावत नजायज था – मरा कब सिंह खाता है
नहीं एहसास उसको था पड़ा जब सिंह से पाला

राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
शनिवार ०६/०८/२०१६

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

3 thoughts on “बुझदिल पड़ोसी

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर कविता !

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आपकी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आपकी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन

Comments are closed.