कविता

अवश्य ही खुश करने आना

15 अगस्त का, सुहाना समां था,
अंतर्मन की खुशी से, लग रहा दिलखुश सारा जहां था,
विदेश-प्रवास के, सुनहरी-सजीले दिन थे,
बर्फ़ीली सर्दी का मौसम, चल रहा वहां था.

 

शाम के चार भी नहीं बजे थे, कि दिन ढलता-सा लगा,
बाहर से सूखते कपड़ों को, उठाने के लिए कदम बाहर रखा,
आसमां का अद्भुत नज़ारा देखकर, मन मानो भरमाया-सा था,
एक तरफ़ सुनहरी दिन, एक तरफ़ रुपहली रात का आभास-सा लगा.

 

एक ओर चमक रहे थे, सुनहरी सूरज दादा प्यारे,
दूसरी ओर दर्शन दे रहे थे, आधे-पौने चंद्रमा न्यारे,
समय तो, सूरज दादा के चमकने-दमकने का था,
हमने चंदामामा से पूछा, यह क्या घोटाला है मामा, कुछ तो बता दे.

 

मामा जी बोले, “अरे-अरे, धीरे बोलो, यह क्या गज़ब करती हो!
सूरज दादा के सामने, घोटाले का नाम क्यों लेती हो?
कहीं सुन लिया उन्होंने, कि मैं किसी घोटाले में शामिल हूं,
तो कह देंगे, मैं नाराज़ हूं तुमसे, अब खुद ही अपने को चमका लो.

 

मैंने तो धरती वालों से सुना था, कि वे बोर होने का कोई बहाना ढूंढते हैं,
कभी लैपटॉप खराब होने पर उदास, मोबाइल खराब होने पर हताश होते हैं,
निराशा तो मानो उनकी बपौती ही हो गई है, बात-बात पर निराश होते हैं,
(किसी को बताना मत, हमने भी सैर करने का एक बहाना ढूंढ लिया)
सोचा, आज दिन में ही सैर कर ली जाए, रात को तो सबके दरवाज़े बंद होते हैं.

 

एक तरफ़ देखा तो सर्दी और धूप का, अनोखा संगम था,
लोगों के टी.व्ही. ऑन थे, कहीं अपार खुशी कहीं बेहद ग़म था,
कोई थिएटर में, कोई मॉल-पिकनिक में मस्ती में मस्त था,
कोई रोटी की तलाश में, बेचारा मासूम-सा लगता बेदम था.

 

दूसरी तरफ़ नज़र डाली तो, संसार गर्मी और लू से बेज़ार था,
भारत की स्वतंत्रता दिवस का सुनहरी दिन था, इसलिए कोई नहीं बेकार था,
हर किसी को तिरंगे झंडे के रंगों वाली, चीज़ों व नॉवल्टीज़ खरीदने की धुन थी,
मिले थे उनको शायद बड़े-बड़े ऑर्डर, हर कोई खुशी से मुस्कुराता बार-बार था.

 

जो किसी काम में व्यस्त होते हैं, उनके लिए हर मौसम एक उपहार-सा लगता है,
जिनके पास करने को कोई काम नहीं, अकेला-उदास-निराश-हताश लगता है.
लो, सूरज दादा अपनी ड्यूटी बजाकर चल दिए, हमको रोशन कर गए,
साथ हमारे आसमान में, सितारों का सुहाना सिंगार बहुत खूब सजता है.”

 

हमने कहा, “मामा जी, फिर कभी ऐसा सुंदर नज़ारा दिखाना,
हमें फिर से सारे संसार के, नव समाचार सुनाकर कुछ अच्छा करना सिखाना,
इस बार तो खाली हाथ आए हो, अगली बार मालपुए और चॉकलेट साथ लाकर,
अपने छोटे भानजों-भानजियों को, अवश्य ही खुश करने आना,
मालपुए और चॉकलेट चाहे मत लाना, अवश्य ही खुश करने आना.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

6 thoughts on “अवश्य ही खुश करने आना

  • डॉ रमा द्विवेदी

    प्रिय सखी लीला जी ,बढ़िया विचारपूर्ण रचना ..

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी रमा जी, एक नायाब और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , कविता बेहद अछि लगी .बातों ही बातों में आप ने गरीबी और अमीरी का बखूबी वर्णन कर दिया . उमीदों से ही संसार है .अगर हम १९४७ और २०१६ में अंतर देखें तो मन पर्सन हो जाता है .कभी हम बाराश के दिनों में गाँव से बाहर जा नहीं सकते थे, अज सड़कों का जाल बिछा हुआ है .वोह बहुत नज़दीक है जब चंदा मामा जिधर भी जायेंगे खुश हो कर आयेंगे .रचना बहुत अछि लगी .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. गरीबी-अमीरी, दुःख-सुख, दिन-रात चलते ही रहते हैं. हमें भी चलते रहना चाहिए. एक नायाब और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

  • राजकुमार कांदु

    श्रद्धेय बहनजी ! कविता बहुत बढ़िया लगी । किसी भी उत्सव या त्यौहार पर अंतर्मन खुश हो उठता है । अंतर्मन की ख़ुशी सारे नज़ारे को दिलकश बना देता है । कविता में आपने सामाजिक आर्थिक असंतुलन पर भी प्रकाश डाला है जिसकी वजह से रचना में चार चाँद लग गए हैं । हमें अवश्य उम्मीद करनी चाहिए कि अगले साल कुछ नया अच्छा समाचार मिले और चंदामामा हमें खुश करने अवश्य आयेंगे इसी भरोसे के साथ एक और बेहतरीन रचना के लिए आपका धन्यवाद ।

    • लीला तिवानी

      प्रिय राजकुमार भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. अंतर्मन की ख़ुशी सारे नज़ारे को दिलकश बना देती है. यहां पर ऐसा नज़ारा अक्सर देखने को मिल जाता है. कभी-कभी सुबह सैर पर भी सूर्य-चंद्रमा इकट्ठे दिखते हैं. बहुत खूबसूरत नज़ारा होता है. हमें अवश्य उम्मीद करनी चाहिए कि अगले साल कुछ नया अच्छा समाचार मिले और चंदामामा हमें खुश करने अवश्य आयेंगे और हमारी मनचाही चीज़ें लाएंगे. एक नायाब और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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