गीत/नवगीत

जिओ बेटी जिओ…

जिओ बेटी जिओ, जिओ बेटी जिओ
रियो को अपने नाम कियो।

तुम देती हो सम्मान हर बार
हम हर बार अपमान दियो, जिओ…

हम तरसे थे इक पाने को
तूने दो-दो पदक दियो, जिओ…

बेटों की टोली को बिटिया ने
लियो-लियो कियो, जिओ…

जिओ बेटी जिओ, जिओ बेटी जिओ
रियो को अपने नाम कियो।

कमतर कहाँ आज बेटी है
वो बीडीओ है और सीओ, जिओ…

माँ का दूध नसीब कहाँ
हर बार उपेक्षा का ही घूंट पियो, जिओ…

बेटी है पराया धन मुकेश
समाज ने यही मंत्र दियो, जिओ…

दुख की चादर पहाड़ जैसा
उस पर भी हथौड़ा दियो, जिओ…

जिओ बेटी जिओ, जिओ बेटी जिओ
रियो को अपने नाम कियो।

जो गर्भ में मारे बेटी को
उसने भी खुशी का इजहार कियो, जिओ…

मुकेश करता रब से यही एक विनती
बेटी तू सौ-सौ साल जिओ।

जिओ बेटी जिओ…

मुकेश कुमार सिन्हा, गया

रचनाकार- मुकेश कुमार सिन्हा पिता- स्व. रविनेश कुमार वर्मा माता- श्रीमती शशि प्रभा जन्म तिथि- 15-11-1984 शैक्षणिक योग्यता- स्नातक (जीव विज्ञान) आवास- सिन्हा शशि भवन कोयली पोखर, गया (बिहार) चालित वार्ता- 09304632536 मानव के हृदय में हमेशा कुछ अकुलाहट होती रहती है. कुछ ग्रहण करने, कुछ विसर्जित करने और कुछ में संपृक्त हो जाने की चाह हर व्यक्ति के अंत कारण में रहती है. यह मानव की नैसर्गिक प्रवृति है. कोई इससे अछूता नहीं है. फिर जो कवि हृदय है, उसकी अकुलाहट बड़ी मार्मिक होती है. भावनाएं अभिव्यक्त होने के लिए व्याकुल रहती है. व्यक्ति को चैन से रहने नहीं देती, वह बेचैन हो जाती है और यही बेचैनी उसकी कविता का उत्स है. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरा हूँ. जब वक़्त मिला, लिखा. इसके लिए अलग से कोई वक़्त नहीं निकला हूँ, काव्य सृजन इसी का हिस्सा है.

2 thoughts on “जिओ बेटी जिओ…

  • राजकुमार कांदु

    मन की बात कहने का आपका प्रयास अच्छा लगा ।

    • मुकेश कुमार सिन्हा, गया

      दिल से शुक्रिया

Comments are closed.