कविता : ब्याही बेटी
बर्षों पहले पास के गाँव में ब्याही बेटी रहती है फिक्रमंद आज भी बूढी माँ के लिए जबकि वह खुद
Read Moreबर्षों पहले पास के गाँव में ब्याही बेटी रहती है फिक्रमंद आज भी बूढी माँ के लिए जबकि वह खुद
Read Moreप्रदत शीर्षक- हौसला , उम्मीद , आशा , विश्वास , आदि समानार्थी हौसलों को संग लिए, उगा हुआ विश्वास चादर
Read More‘यत्र: नार्यौ पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ इस सूक्ति को समझने वाले आज भी बहुत कम हैं | आज तक भी
Read Moreसंस्कृत और वैदिक मैथ्स सीखने का काम संभव होगा ओपन लर्निंग और ऑनलाइन कोर्स के ज़रिए से. आम तौर पर
Read Moreसहना क्यूँ कब तक बहना ? जब तक केवल वो बहु थी कुछ नहीं रही उसकी औकात न घर की
Read Moreवो कहते हैं कभी लिखना मत छोड़ना हम रहे न रहे जहां में कोरे कागज पे अपने जज्बातों को रखना
Read Moreवफ़ा जिनमें न हो वो रिश्ते अक्सर टूट जाते हैं अगर कमज़ोर हो बुनियाद तो घर टूट जाते हैं न
Read Moreचीख-चीखकर आजादी, करती है आज सवाल। हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल? दुखी क्यों लाल-बाल औ’ पाल? चीख-चीखकर आजादी, करती है आज
Read Moreआ री निंदिया हाथ पकड़ मुझे अपने साथ ले चल मेरे सपनों के मुझे तू गाँव ले चल जहाँ बादल
Read More