कविता

वो लडकी

हॉ वो लडकी
जब पहली बार
अपने घर की
चारदिवारी पार कर
निकली थी
बिना किसी से पूछे
बिना किसी को बतायें
अपने प्यार को पाने
लेकिन उसे क्या पता
उसका अपना ही आशिक
उसे छल बैठेगा
प्यार का दिवाना बनाकर
उसे फँसा बैठेगा
ये तो सच्चा प्यार कर बैठी थी
अपना तन मन सब सौप चुकी थी
आशिक के सिवाय उसका कोई नही था
क्योकि वो जब चली थी
घर से नाता तोड चली थी
आखीर वो तोडती क्यो नही
उसको इजाजत जो नही मिलता
घर का चौखट पार करने का
अंत में वह छली ही ही गयी
एक दिन अपने ही आशिक
और उसके दोस्तो के
हवश का शिकार हो गयी
इतना ही नही मौत के घाट भी
उतार दी गयी
कोई उसको देखने वाला नही
सभी लवारिश बताते हुयें
उल्टे उसे ही कोशते
ये कैसा प्यार
कैसा ये इंसानियत
अपनो को ही जो छले
वो कैसा प्यार
और अब कौन करेगा
ऐसा प्यार पर विश्वास|
   निवेदिता चतुर्वेदी…..

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

One thought on “वो लडकी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आज कल लड़की को ज़िआदा समझदार होने की जरूरत है क्योंकि नुक्सान उसी का होता है .लड़के तो बलात्कारी हो कर भी शादी करा लेते हैं लेकिन लड़की की जिंदगी बर्बाद हो जाती है .अगर पियार वीआर हो भी जाए तो माता पिता को बता देना चाहिए वरना लड़की के लिए आगे अँधेरे के सिवा कुछ नहीं मिलता . अगर बचा हो जाए तो लड़का तो भाग जाएगा ,लड़की उस बच्चे को लेकर कहाँ जायेगी ,बच्चे को छोड़ कर ना तो वोह कोई काम कर सकती है और न ही कोई रिश्तेदार उस को सपोर्ट करता है .

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