नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 16
नवभारत टाइम्स (नभाटा) में ब्लॉग पर अपने पहले हास्य-व्यंग्य को अच्छा प्रतिसाद मिलने के बाद मैं और अधिक व्यंग्य लिखने को प्रेरित हुआ. अन्य लेखों के बीच बीच में मैंने कई व्यंग्य लिखे, जिनको पाठकों द्वारा बहुत पसंद किया गया. ऐसा एक व्यंग्य मनमोहन सिंह को लक्ष्य करते हुए लिखा था- “लो फिर पड़ा तमाचा”. इसको सबसे अधिक पसंद किया गया और इसे मैं अपने सबसे अच्छे व्यंग्यों में से एक मानता हूँ. आप भी इसका आनद लीजिये. इस पर आयी टिप्पणियों को भी अवश्य पढियेगा.
हास्य-व्यंग्य : लो फिर पड़ा तमाचा!
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Khattha-Meetha/entry/%E0%A4%B9-%E0%A4%B8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5-%E0%A4%AF-%E0%A4%97-%E0%A4%AF-%E0%A4%B2-%E0%A4%AB-%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%A1-%E0%A4%A4%E0%A4%AE-%E0%A4%9A
इसके कुछ दिन बाद मैंने एक व्यंग्य राहुल गाँधी को लक्ष्य करके लिखा- “चोरों के युवराज बोले”. इसको भी पाठकों ने बहुत पसंद किया.
हास्य-व्यंग्य : चोरों के युवराज बोले
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Khattha-Meetha/entry/%E0%A4%9A-%E0%A4%B0-%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC-%E0%A4%B2
कई लोगों ने मुझसे कहा था कि मैं हमेशा कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को निशाना बनता हूँ, लेकिन भाजपा के बारे में कोई व्यंग्य नहीं लिखता. उनकी शिकायत दूर करने के लिए मैंने उस समय भाजपा पर एक व्यंग्य लिखा- “भाग्य जगाओ पार्टी”. इसमें पूरी पार्टी का तो मजाक बनाया ही है उसके एक विशेष नेता को बिशेष तौर पर निशाना बनाया है, जिसने एक मूर्खतापूर्ण बयान दिया था. इसे पढ़कर मजा लीजिये और उस नेता को पहचानने की कोशिश कीजिये.
हास्य-व्यंग्य : भाग्य जगाओ पार्टी
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Khattha-Meetha/entry/%E0%A4%B9-%E0%A4%B8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5-%E0%A4%AF-%E0%A4%97-%E0%A4%AF-%E0%A4%AD-%E0%A4%97-%E0%A4%AF-%E0%A4%9C%E0%A4%97-%E0%A4%93-%E0%A4%AA-%E0%A4%B0-%E0%A4%9F
मेरे ये सभी व्यंग्य लखनऊ के एक प्रसिद्ध समाचार पत्र “जनसंदेश टाइम्स” में छपे थे. साथ में मेरा मोबाइल नम्बर भी छपता था. इससे मेरे पास कई कॉल आते थे. तभी मुझे पता चला कि यह अख़बार वास्तव में बाबूराम कुशवाहा नामक तत्कालीन बसपा नेता का है, जो अभी भी भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद है. यह पता चलते ही मैंने इस अखबार में लिखना बंद कर दिया.
उन्हीं दिनों मैंने अपनी मासिक पत्रिका “युवा सुघोष” नाम से शुरू की थी. अतः मेरा ध्यान इसी के प्रचार प्रसार में अधिक लगने लगा. इसमें भी मैं हर अंक में अपना एक व्यंग्य अवश्य देता था. यह पत्रिका अब “जय विजय” के नाम से निकल रही है और बहुत लोकप्रिय हो गयी है.
— विजय कुमार सिंघल
भाद्रपद शु. 9, सं. 2073 वि. (10 सितम्बर 2016)
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद् आदरणीय श्री विजय जी। आपकी लेखन प्रतिभा बेमिसाल है। सादर।
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद् आदरणीय श्री विजय जी। आपकी लेखन प्रतिभा बेमिसाल है। सादर।
प्रणाम आदरणीय ! सब आपका आशीर्वाद है !
प्रणाम आदरणीय ! सब आपका आशीर्वाद है !
विजय भाई , यह विअंग बहुत मजेदार लगे .
धन्यवाद भाई साहब !
धन्यवाद भाई साहब !