कविता

अस्तित्व

सजाया गया लाल रंग का जोड़ा
रंगाया था उसे मेरे अरमानो के खून से
चूड़ियाँ भरी गयी हाथो में
मांग में सिंदूर किसी के नाम का
पायल, बिछुवे, झुमके, नथनी
कितनी करनी कितनी कथनी
मिटा दिए गये मुझ से
मेरे ही होने के सारे प्रमाण
में एक पूरी की पूरी देह
और उसमे बसती मेरी आत्मा
मुझमे मेरा नही रहा कुछ भी बांकी
मेरे अस्तित्व को जला दिया गया उस अग्नि में

जिसे माना ईश्वर का साक्षी
हाँ, साक्षी ही तो थे ईश्वर
देख ही तो रहे थे सब कुछ भस्म होते हुए
और ख़त्म हो गया एक जीवन वही
ख़त्म हो गया

सरिता पंथी 

 

 

 

सरिता पन्थी

बचपन से ही हिंदी साहित्य में विशेष रूचि रही है लगभग तीन वर्ष पहले ही मन के भावों को शब्दों में उकेरना प्रारम्भ किया है सामाजिक कुरीतियाँ और अवांछनीय परम्परायें ही लेखन का मुख्य विषय रहे है लेखन में सदा ही समाज को परिवर्तन का सार्थक सन्देश जाता रहा है | समाज के अनछुए और ज्वलंत विषयों पर लेखनी ने सदा ही प्रहार किया है | शैक्षिक योग्यता बी. ए. साहित्यिक हिंदी एम. ए. राजनीति शास्त्र, एच.एन.बी.गढ़वाल विश्वविद्यालय प्रकाशित रचनाएं  काव्य पल्लवन प्रतियोगिता के छायाँ चित्र पर कविता लिखने पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त कविता "बसती दुनिया मेरी पेड़ो पर "  फिर से आई है बारी  सोते सोते रात में  चिरैया एक सोयी थी ही लेखन का मुख्य विषय रहे  कलयुगी बाबा  क्या सच में स्वतंत्र है हम ?  हाँ मैं किन्नर हूँ  तडपे है जिया ओ वैरी पिया  बहुत बुरा लगता था  पिया मोरे गये परदेश  तोड़ के बंधन बह गया ये मन पता- महेंद्रनगर , जिला कंचनपुर, नेपाल मोबाईल न. – 09779848720721 Email Id:- saritapanthi1234@gmail.com