गीतिका/ग़ज़ल

धर्मशाला

जीवन एक चक्र है ‘ दुनिया है धर्मशाला
हर शख्स मुसाफिर हैै ‘ जो है जानेवाला ।

काला हो चाहे गोरा ‘ हर जान की किमत है
हर जिंदगी यहाँ पर ‘ उस खुदा की नेमत है ।

रहे ना राजा पोरस ‘ ना सिकंदर महान
कर ना गुरूर खुद पे ‘ हर हस्ती मिट जाएगी ।

कर ले जतन तु थोडा ‘ सब सोच ले नादान
इंसानियत से जिंदगी ‘ सुख से ही कट जाएगी ।।

मीलजुल कर जीना सीख ले ‘ क्यूँ करता है तु बलवे
इक बार इल्म कर ले ‘ इंसानियत के जलवे ।

पैगाम ए मोहब्बत से ही चलती है ये दुनिया
जब ना रहेगा तु ‘ याद करती है ये दुनिया ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।