हास्य-व्यंग्य : नो लाइफ विदाउट वाइफ
हमने सुन रखा था ‘नो नॉलेज विदाउट कॉलेज एंड नो लाइफ विदाउट वाइफ’ सो हम नॉलेज लेने के लिए कॉलेज में भर्ती हो लिए| लगभग पांच सात सालों में ही थोड़ी भोत नॉलेज भी हो ही गई | चूँकि दूसरी कहावत ‘नो लाइफ विदाउट वाइफ’ भी इसी के साथ कही जाती है सो हमें समझ आ गया कि दोनों काम एक साथ होने हैं| अब लाइफ के लिए वाइफ का पेच ऐसा अड़ा कि किसी पेचकस से खुलने को तैयार ही नहीं हुआ| हम ये सोच सोच कर डिप्रेशन में आ गए कि वाइफ के लिए कॉलेज छोड़ें तो नोलेज वाली लाइन कुंवारी रह जायेगी और वाइफ के लिए शादी करें तो कॉलेज में लड़कियां छेड़ेंगी, चिढ़ायेंगी! मजाक होगा न करें तो लाइफ कैसे बनेगी!
अपने दिमाग की चक्की घुमाने के बाद एक समाधान सामने आया! हमने चुल्लू भर पानी पिया और चेन की सांस ली| समाधान कुछ यूं था कि हमारे पड़ोस में एक भाई जान ने ताजा ताजा गन्धर्व विवाह रचाया था| हमने उस कहावत का पुनः अवलोकन किया और पाया कि ये कहीं भी नहीं लिखा हुआ था कि लाइफ के लिए वाइफ अपनी ही होनी चाहिए| वैसे भी अपनी होने पर लाइफ बनने के चांस निन्यानवे फीसद कम हो जाते हैं| सो हम इस नतीजे पर जा चढ़े कि वाइफ ही चाहिए भाई जान की ले लेते हैं! रही बात ये कि वो हमें घास डालेगी भी या नहीं तो इसके लिए हमारे पास एक ठोस तर्क ये था कि प्रेम ही तो है एक से हो गया तो क्या गारंटी कि दूसरे से नहीं हो सकता| हम तो वैसे भी भाई जान से ज्यादा हट्टे कट्टे खूबसूरत और नोजवान हैं| बस फिर क्या था हमने अपने प्रोजेक्ट पर कार्य करना शुरू कर दिया|
दिन भर कॉलेज में भटक भटक कर नॉलेज गेन करते और सुबह शाम पड़ोस की वाइफ के साथ लाइफ बनाते| यकीन मानना पड़ेगा भई हमारी लाइफ बननी शुरू भी हो गई जल्दी ही | आठ बजे बिस्तर त्याग करने वाले हम चार पर आ गए थे| खुद में ये चमत्कारी परिवर्तन देख हमें उन कहावतों पर भी प्यार आने लगे था| प्रातः चार बजे उठ कर हम पहले तो दस किलोमीटर की दौड़ लगाते फिर कुछ कसरत-वसरत, योग- शोगा करते| स्नान- ध्यान, नाश्ता-वास्ता करने के बाद हम अपनी कुर्सी लगा कर अपना मुखड़ा सूरज पड़ोसी के घर ओर कर बैठ जाते| आँखों पर काला चश्मा लगा कर हाथों पर पुस्तक धारण कर नॉलेज और लाइफ को एक साथ देखने का मजा लेते| हमारे पड़ोसी भाई जान तब तक ऑफिस के लिए खिसक लिए होते| अम्मा को हमारे इस बदले बदले अन्दांज से कई बार हिचकी, उबकाई आई लेकिन हमारी आँखों पर लगा काला चश्मा हमारे इन काले कारनामों पर मेरे हिसाब से तो पर्दा डाल रहा था| अम्मा ने हमें एक दो बार समझाया भी लेकिन हमने कह दिया ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो” अब अम्मा बेचारी करे भी तो क्या!
पाठशाला में एक बार गुरु जी ने बताया था कि यदि तुम किसी को चाहते हो तो भले ही तुम उसे मत बताओ एक दिन वो भी तुम्हें चाहने लगेगा, ये प्रकृति का नियम है| ये बात हमने गाँठ बाँध ली थी और हम तो प्रदर्शित भी फुल्ल कर रहे थे| भला हो प्रकृति के इस नियम का कि थोड़े ही दिनों में हमें वे भी टूट कर चाहने लगी| धीरे धीरे मेरी लाइफ बन रही थी, मेरी आँखे दो से चार हो गई, मैं तो पहले से ही तैयार था वो भी तैयार हो गई| कुछ ही दिनों में हमारी प्रेम पींगें चढ़ने लगीं और प्यार की शर शैया पर हमारा मिलन होने लगा| हमारी लाइफ बुलंदियों पर थी कि एक दिन अचानक हम रंगे हाथों धर लिए गए| हम पडोसी की वाइफ के हाथों में मेहँदी लगा रहे था, थोड़ी सी मेहँदी हमारे हाथों में भी लग गई और रंगे हाथों भाई जान ने पकड़ लिया| हमने वाइफ के प्यार के गले में अंगूठा देते हुए कहा कि ये तो खुद ही सहमती से … लेकिन भारतीय दंड सहिंता की धारा 497 के तहत हमें पांच साल चक्की पीसने का आदेश हो गया और हमारी सारी दलीलें खारिज होते हुए हमारी लाइफ बनते बनते बच गई|
एक दिन हमें मिलने एक मित्र आये और सूचना दी कि हम तीन से चार हो गए और हम विदाउट नॉलेज विदाउट वाइफ व्यंग्यकार हो गए|
— अनन्त आलोक