धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

देश के सभी नागरिकों की तीन मातायें

ओ३म्

सभी मनुष्यों की तीन मातायें होती हैं। एक जन्म दात्री माता तो प्रसिद्ध ही है जिसे सब जानते हैं। परन्तु इसके अतिरिक्त भी दो और मातायें सबकी हैं जिन्हें कुछ जानते हैं और बहुत से नहीं भी जानते। कई लोग कलह प्रिय होते हैं जो कुतर्क कर इस सत्य को झुठलाना चाहते हैं। सत्य कभी झुठलाया नहीं जा सकता है, अतः जो लोग ऐसा करते हैं उनका झूठ किसी न किसी प्रकार से सामने आ ही जाता है। मनुष्य के लिए सबसे आवश्यक एक देश होता है जिसमें वह पैदा होता व रहता है। धर्म का स्थान जन्म देने व जन्म लेने वाले देश के बाद आता है। जब वह जन्म लेता है तो उस समय धर्म नहीं वह देश होता है। यदि देश न हो तो जन्म नहीं हो सकता और धर्म न हो तो भी जन्म होता है। यह एक सच्चाई है जिसे बहुत से कुतर्की लोग स्वीकार नहीं करते। वह देश ही जन्म देने वाला देश कहलाता है जिसे जन्मभूमि व भारत के परिप्रेक्ष्य में भारत-माता कहा जाता है।

मनुष्य की जन्मदात्री माता के अतिरिक्त दो मातायें वेद-माता और देश-माता वा भारत माता भी हैं। वेद माता से ही संसार के लोगों ने, सभी मत व धर्म के लोगों वा उनके पूर्वजों ने, बोलना सीखा है और विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त किया है। वेद माता सब सत्य विद्याओं से अपने बच्चांे वेद-पुत्रों को परिचित कराती है। वह उसे ईश्वर जो हमारा माता व पिता दोनों है, का यथार्थ परिचय भी कराती है। मनुष्य को उसकी आत्मा का परिचय व यथार्थ ज्ञान वेदों से ही मिलता है। यदि वेद न होते तो हम आज तक कोई भाषा बोल नहीं सकते थे और न ही ईश्वर के यथार्थ स्वरुप से परिचित हो सकते थे। संसार में जितने आस्तिक मत हैं अर्थात् जो ईश्वर व संसार में एक दैवीय सत्ता को मानते हैं जिससे कि यह सृष्टि बन कर अस्तित्व में आई और जिससे प्राणी मात्र का जन्म होता है और पालन भी होता है, उन सभी मतों व धर्मों में ईश्वर व ऐसी किसी भी दैवीय शक्ति का विचार वेद से ही गया है। यदि वेद न होते तो वह मत व धर्म भी कदापि न होते और न उनमें ईश्वर व आत्मा विषयक आधा अधूरा ज्ञान ही होता। अतः सभी मतों वा तथाकथित धर्मों को यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर वेदों का ऋण स्वीकार करना चाहिये और अपने विचारों व मान्यताओं में संशोधन करना चाहिये। अतः ऋषियों वा मनुष्य को भाषा और ज्ञान देने वाली वेद-मता को सभी को स्वीकार करना चाहिये। वेद में एक मन्त्र आता है स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्ताम् पावमानी द्विजानाम। आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्म वर्चसं। मह्यम् दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्।।’ इस मन्त्र में ईश्वर द्वारा उत्पन्न ज्ञान वेद में कहा गया है कि मैं वरदान देने वाली वेद माता की स्तुति = गुणगान करता हूं। वह ईश्वर वा वेदमाता हमें, स्वस्थ जीवन व दीघार्यु, प्राण अर्थात् जीवन, सन्तान रूपी प्रजा, गो, अश्व, बकरी व भेड़ आदि हितकारी पशु, कीर्ति व धन आदि पदार्थ सहित ब्रह्मवर्चस अर्थात् ईश्वर का पूर्ण सत्य ज्ञान व ईश्वर का साक्षात्कार कराने वाली विद्या प्रदान करती है। यह सभी दैविक पदार्थ देकर वेदमाता हमें ईश्वर के लोक ब्रह्म-लोक व मोक्ष की सैर भी कराती है। अतः वेद मन्त्र में ईश्वर प्रदत्त ज्ञान वेदों को वेद-माता के रूप में बताया गया है। हमारा व सभी मनुष्य कहलाने वाले लोगों का कर्तव्य व परम-धर्म है कि हम इसे स्वीकार कर इसके अनुरुप आचरण करें। यहां हम स्वाध्याय की चर्चा करना भी चाहते हैं। हमारे शास्त्रों का विधान है कि स्वाध्यायान् मा प्रमदः अर्थात् हम स्वाध्याय करने में कभी प्रमाद न करें। स्वाध्याय का अर्थ वेदों का अध्ययन होता है। यह वेद माता से वरदान प्राप्त करने के लिए किया जाता है जिसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है। वेदाध्ययन से हमें यह वरदान भी मिलता है कि हम ईश्वर व जीवात्मा तथा भौतिक पदार्थों के सत्य स्वरूप से जुड़े रहते हैं जिससे हम नास्तिकता व अविद्या को प्राप्त नहीं होते और ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना व वेद विहित कर्मों को करके मोक्ष अर्थात् सभी प्रकार के दुःखों से पूर्ण मुक्ति के अधिकारी बनते हैं। अतः वेदमाता ही जन्मदात्री माता की तरह हमें अज्ञान व अविद्या से मुक्त करने वाली माता है। हम नहीं समझते कि यदि कोई मनुष्य इसे स्वीकार नहीं करता तो क्या वह मनुष्य कहलाने योग्य होता है?

हमने भारत माता व जन्मभूमि की उपर्युक्त पंक्तियों में चर्चा की है। रामायण में श्री रामचन्द्र जी अपने अनुज लक्ष्मण को समझाते हुए कहते हैं कि यद्यपि विदेशी भूमि लंका सोने की है अर्थात् स्वर्ण के समान बहुमूल्य पदार्थों से युक्त है तथापि वह मुझे सर्वोपरि अच्छी नहीं लगती क्योंकि जननि जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’ जन्मदात्री माता और जन्मभूमि अर्थात् देश वा भारतमाता स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। देश में ही हम सब देशवासियों को यह जीवन मिला है और इसी में अन्त्येष्टि द्वारा हमारे शरीर को जलकर राख बनना और यहीं की मिट्टी में मिलना है। अतः देश भी सर्वतो-महान होता है। रूढ़िवादी व परम्परागत मत वा धर्म नहीं अपितु यथार्थ धर्म के अनुसार देशभूमि हमारी माता के समान होती है। देश ही हमें भोजन के सभी पदार्थ और आश्रय के लिए सुखदायक निवास व भूमि प्रदान करता है। अपने देश की हवा व पानी को पीकर ही हम जीवित रहते हैं। यदि हमें देश की हवा न मिले तो कुछ ही क्षणों व पलों में हमारी जीवन लीला समाप्त हो सकती है। यहां यह उल्लेख करना भी समीचीन है कि वेद और हमारे ऋषियों ने यज्ञ वा अग्निहोत्र का विधान किया है। यज्ञ में शौच अर्थात पूर्ण स्वच्छता का भी विधान है। बिना स्वच्छ हुए ईश्वर की स्तुति आदि व यज्ञ नहीं किये जा सकते। यज्ञ का तात्पर्य है ईश्वर की स्तुति आदि करते हुए वायु मण्डल व आकाशीय जल की शुद्धि के साथ वनस्पतियों व औषधियों व सभी प्रकार अन्न-कन्द-मूल-फल आदि को शुद्ध रूप में उत्पन्न कर उसे प्राप्त करना व कराना। अग्निहोत्र यज्ञ भी एक प्रकार का देश भक्ति का कार्य है। हमारे शास्त्रों ने यह भी कहा है कि हम वयं राष्ट्रे जाग्रयाम पुरोहिताः’ अर्थात् हमारे राष्ट्र के सभी नेता यथा राजा, प्रधानमंत्री व सेनापति आदि सदैव जाग्रत रहते हुए राष्ट्र के रक्षक हों। पुरोहित देश व समाज का सम्पूर्ण हित करने वालों को कहते हैं। इससे यह भी प्रतीत होता है कि राष्ट्र के पुरोहित राष्ट्र के शत्रुओं को सिर उठाने से पहले ही कुचल डाले। आज हमें ऐसे ही नेताओं की आवश्यकता है। हमारे प्रधानमंत्री श्री मोदी, सभी सेनापतियों व कुछ थोड़े से नेताओं में ऐसे गुण विद्यमान हैं जिनसे राष्ट्र को बहुत उम्मीदें हैं तथा देश इन पर गर्व करता है। ऐसे नेताओं से ही देश नागरिकों की रक्षा की उम्मीद रख सकता है। ढुलमुल व स्वार्थी लोगों व नेताओं से देश की रक्षा व उन्नति होना सम्भव नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी जैसे नेता व उन जैसे नागरिक ही मातृभूमि के पुजारी व स्तोता कहे जा सकते हैं। हम प्रसंगान्तर जाकर यह भी कहना चाहते हैं कि 18 सितम्बर 2016 को जम्मू एवं कशमीर में हमारे 18 से 20 जो सैनिक शहीद हुए हैं, वह व  हमारे सेना के सभी जवान व अधिकारी मातृ भूमि के सच्चे पुजारी हैं जो देश की रक्षा के लिए अपने प्राण आहूत कर देते हैं। हमें इन पर नाज है और हम इनको नमन करते हैं। यदि कोई व्यक्ति व सम्प्रदाय देश की अवहेलना कर उसे अपने मत से हीन व निम्नतर मानता है तो हमें ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस आता है तथा हमारी दृष्टि में वह सच्चे देशभक्त नहीं हो सकते।

निष्कर्षतः हमारी दृष्टि में सभी बुद्धिमान मनुष्यों को तीन माताओं जन्मदात्री, वेदमाता और भारत माता’ की स्तुति व गुणकीर्तन सहित भारत माता की जय’ बोलने में संकोच नहीं करना चाहिये। यह बता दें कि वेद माता की स्तुति में ईश्वर की स्तुति व उपासना भी सन्निहित है। हम आशा करते हैं कि पाठक हमसे सहमत होंगे। हम यह भी अनुभव करते हैं कि इसके विपरीत कोई युक्ति व तर्क किसी के पास नहीं है। इति शम्।

मनमोहन कुमार आर्य