पिता
पिता का दाहसंस्कार कर
घर के सामने खड़े होकर
अपने पिता को पुकारने की प्रथा
जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर
बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है
उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती
भर जाती आँखों में पानी
वो पानी बढ जाता
गला रुँध जाता ,तब
जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला
और सामने जल रहा हो दीपक
बचपन की स्मृतियाँ
संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर
जो काम पिता कर लेते थे
वो लोगो से पूछकर करना पड़ता
होंसला अफजाई
और परीक्षा में पास होने पर
पीठ थपथपाई भी गुम सी गई
अब में पास हुआ किंतु
शाबासी की पीठ सूनी सी है
और त्यौहार भी मुँह मोड़ चुके
और रौशनी रास्ता भूल गई
पकवान और नए कपडे कैद हो गए पेटियों में
इंतजार है श्राद पक्ष का
पिता आएंगे पूर्वजो के संग
धरती पर अपने लोगो से मिलने
जब श्राद में पूजन तर्पण
और उन्हें याद करेंगे जब हम
क्योंकि पिता जो थे वृक्ष की तरह
पक्षियों का तो वे आसरा
हमारे भी सहारा थे
मगर आज हम है बेसहारा
संजय वर्मा “दृष्टी “
१२५ शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला धार (म प्र )