कहानी

लघु कहानी : तोहफा

सोनाली का जन्मदिन था, अपने माता पिता की एकलौती संतान थी सोनाली, नाजों  से पली हुई, घर में सभी की लाड़ली थी। घर में दादी, मम्मी और पापा और खुद सोनाली। हर साल की तरह इस साल भी उसके जन्मदिन की तयारियां चल रही थी। लिस्ट अनुसार लोगों को न्योता दिया गया। वो दिन भी आ गया जब घर को गुब्बारों से, और रंगीन कागजों से सजाया गया। लोगों का आना शुरू हो गया था, पापा ने म्यूजिक सिस्टम लगा दिया था, संगीत चल रहा था, सोनाली सजी धजी प्यारी सी गुड़िया लग रही थी। सोनाली के जैसे ही सब आ गए तो मम्मी केक लेकर आयीं। जन्मदिन के गीत के साथ केक को काटा गया, उत्साहित सोनाली की ख़ुशी देख उसके घर वाले भी खुश हो रहे थे। अचानक से सोनाली के दादी की नजर दरवाज़े पर टिक गयी, एक अजनबी को वहां खड़ा पाया। उस अजनबी को पहचानने की कोशिश कर रही थी वे, कुछ समय बाद उन्होंने आखिर उस अजनबी को पहचान ही लिया। उनके आँखों की चमक झाहीर कर रही थी कि वो अजनबी घर का ही सदस्य था। पर उन्होंने खुद को संभाला, वो अपने बेटे के पास गयीं और उसके कानों में कुछ कहा, उन्होंने भी अपनी नज़र उस और डाली, उनके चेहरे पर क्रोध नज़र आया। बहार से अजनबी सबको देख रहा था, उसकी बूढी थकी हुई सी आँखें बहुत कुछ कहना चाह रही थी पर वो वहीँ चुप चाप खड़े थे। पार्टी अपने रंग में थी, वो अजनबी अब भी वहीँ था। रात हो रही थी, लोग अपने अपने घर जाने लगे थे, एक के बाद एक, धीरे धीरे सभी चले गए। अजनबी थक हार कर वहीँ सीढ़ियों पर बैठ गए थे। एक बार तो दरवाज़ा बंद कर दिया गया। अजनबी उम्मीद भरी नज़र से देख रहा था, जो दरवाज़े को बंद करने आया था, पर दोनों में से किसीने कुछ नहीं कहा।

थोड़ी देर के बाद दरवाज़ा फिर खुला, देखा तो वो अजनबी अब भी वहीँ था, पर इस बार दरवाज़ा सोनाली ने खोला। अजनबी को देखकर उनसे लिपट कर रोने लगी और बोली, “दादाजी आप कहाँ चले गए थे? मैंने सब की बात सुन ली, पापा तो आप से बहुत नाराज़ है पर मैं आपको लेने आई हूँ, अंदर चलिए अपने घर चलिए दादाजी।”

सोनाली की बाते सुनकर वे रो पड़े, गले से लगा लिया उन्होंने सोनाली को और रुंधे हुए गले से बोले,” बिटिया तुमने मुझे माफ़ कर दिया?”
इतने में दादी, सोनाली के पापा और मम्मी सभी बहार आ गए, सोनाली की तरफ सभी की नज़र थी। असल में दादाजी ने बरसों पहले घर छोड़ दिया था, और सुना था कि उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी। उस दौरान सोनाली के पापा दस एक वर्ष के रहे होंगे। उसके बाद दादीजी ने अपने बेटे को बड़ा किया और पढाया लिखाया। आज सोनाली के पापा एक फैक्ट्री के मालिक थे। सोनाली ने उन सबकी तरफ देखकर कहा, “जिस तरह से दादाजी घर छोड़ कर चले गए थे, उसी तरह से वापिस भी तो आ गए हैं, मैं अब दादाजी को कहीं जाने न दूंगी।”

दादाजी को सभी अंदर ले गए। यह इश्वर की तरफ से सोनाली को सबसे अनमोल तोहफा मिला था।

कल्पना भट्ट, भोपाल

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377