कविता

कविता : मन का सूनापन

अजीब सी भटकन है ये
न कोई तयशुदा मंजिल
न रास्ते एक तरफा
भरा भरा सा आंंगन
खाली खाली ये मन
क्यों नही कम होती
दीवारों की लम्बाईयाँ
बढती जाती है चहुँ और
पसरती मौन की बिछावन
है खुला आसमान भी
तारों के जाल से बन्धा बन्धा सा
ये चाँद की रोशनी भी अब
चुभती है आखों को
सुहाते है घने अन्धेरे
जहाँ से मैं दिखाई न दूं
किसी को भी
हो कुछ ऐसा जो दे सुकून
बिखरते अहसासों को
बस अब खत्म हो ये
मन का सूनापन!
अल्पना हर्ष, बीकानेर

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - alpanaharsh0@gmail.com बीकानेर, राजस्थान