गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अक्षर मेरे श्वासोच्छवास हैं अक्षर मेरे प्राण,
अक्षर ही हैं नाद अनाहत अक्षर ब्रह्म की तान

अक्षर ही गीता स्वरूप हैं अक्षर आदि अशेष,
अक्षर से उपनिषद बने अक्षर से वेद पुराण

अक्षर से ही दुख झलके, अक्षर से ही आनंद,
अक्षर ही अपमान कराएं, अक्षर से ही मान

अक्षर मेरे मित्र सखा हैं अक्षर गुरू की सीख,
अक्षर ही चीत्कार मेरा और अक्षर मेरा गान

अक्षर ही बन जाएं गरल और अक्षर ही अमृत,
बनूँ मैं दुर्बल अक्षर से, अक्षर से ही बलवान

वायु वेग से प्रसरे अक्षर इसकी गति अनंत,
अक्षर से ही निंदा होती, अक्षर से गुणगान

अक्षर मेरे हृदय की भाषा अक्षर मेरा विचार,
अक्षर से ही सकल विश्व में है मेरी पहचान

अक्षत अजर अमर अक्षर की महिमा अपरम्पार,
तुच्छ जीव मैं अल्पबुद्धि से कैसे करूँ बखान

परमपिता देना मुझको बस इतना ही वरदान,
बोलूं तो सत्संग हो अक्षर मौन रहूँ तो ध्यान

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]