ग़ज़ल
अक्षर मेरे श्वासोच्छवास हैं अक्षर मेरे प्राण,
अक्षर ही हैं नाद अनाहत अक्षर ब्रह्म की तान
अक्षर ही गीता स्वरूप हैं अक्षर आदि अशेष,
अक्षर से उपनिषद बने अक्षर से वेद पुराण
अक्षर से ही दुख झलके, अक्षर से ही आनंद,
अक्षर ही अपमान कराएं, अक्षर से ही मान
अक्षर मेरे मित्र सखा हैं अक्षर गुरू की सीख,
अक्षर ही चीत्कार मेरा और अक्षर मेरा गान
अक्षर ही बन जाएं गरल और अक्षर ही अमृत,
बनूँ मैं दुर्बल अक्षर से, अक्षर से ही बलवान
वायु वेग से प्रसरे अक्षर इसकी गति अनंत,
अक्षर से ही निंदा होती, अक्षर से गुणगान
अक्षर मेरे हृदय की भाषा अक्षर मेरा विचार,
अक्षर से ही सकल विश्व में है मेरी पहचान
अक्षत अजर अमर अक्षर की महिमा अपरम्पार,
तुच्छ जीव मैं अल्पबुद्धि से कैसे करूँ बखान
परमपिता देना मुझको बस इतना ही वरदान,
बोलूं तो सत्संग हो अक्षर मौन रहूँ तो ध्यान
— भरत मल्होत्रा