गीतिका/ग़ज़ल

चर्चा उसी के घर में खज़ाने दबे मिले

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हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले ।
देखा तो मयकदा में कई मयकदे मिले ।।

साकी शराब डाल के हँस कर के यूं कहा।
आ जाइए हुजूर मुकद्दर भले मिले ।।

कैसे कहूँ खुदा की इबादत नहीं वहां ।
रिन्दों के साथ में भी नए फ़लसफ़े मिले ।।

यह बात और है की उसे होश आ गया ।
वरना तमाम रात उसे मनचले मिले ।।

जिसको फ़कीर जान के करता था एहतराम ।
चर्चा उसी के घर में ख़ज़ाने दबे मिले ।।

मुझ से न पूछिए कि ज़माने से क्या मिला ।
बदले मिज़ाज़ ले के यहाँ सिरफ़िरे मिले ।।

पीना गुनाह था तो शराफ़त क्यूँ छोड़ दी ।
कुछ दाग उसूलों में बड़े बेतुके मिले ।।

बेचैनियाँ सबूत हजारों बता गयीं ।
अक्सर ही सिलवटों में तेरे बिस्तरे मिले ।।

क़ातिल तेरी निगाह में कुछ ख़ासियत तो है ।
दीवानगी में लोग बहुत गमज़दे मिले ।।

हुस्नो शबाब भर के जो बोतल उछाल दी ।
साकी शरीफ़ लोग शराफ़त कटे मिले ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]