कुण्डलिया छंद : माया
माया ने हरि से कहा, श्याम आज क्यों मौन ।
चाह लिए राधा फिरे , दोषी जग में कौन ।
दोषी जग में कौन , राज ये बतला दीजै ।
यही रहा अपवाद , हिए शरणागत कीजै ।
कहे राज कविराय , दिखे नित कंचन छाया ।
यही जगत की रीति, नचावत सबको माया ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’