गीतिका/ग़ज़ल

जरुरी तो नहीं

बात सुनता तो हूँ
मैं सबकी मगर
मान भी लूँ ये
जरुरी तो नहीं
रखना हर इक से
इत्तेफाक ऐ दिल
सोचता हूँ ये कोई बात
जरुरी तो नहीं

तु सही होगी मुझे
इससे है इंकार नहीं
मैं गलत हूँ ये समझना
भी जरुरी तो नहीं

तु कहे दिन को रात
मै नहीं कह सकता हूँ
ख्वाब की दुनिया में अब
मैं नहीं रह सकता हूँ

कर लूँ मैं वादा तुझसे
चाँद और सितारों की
तोड़कर ला ही दूँ मैं
यह भी जरुरी तो नहीं

कह के मैं तल्ख़ बातें
तेरी किन्हीं बातों पे
डालने दूंगा नहीं डाका
हसीं रातों पे
संग रहना है तेरे
मेरी मज़बूरी ही सही
जिंदगी जी लूँ जी भर
यह भी जरुरी तो नहीं

क्या कही खूब
किसी शायर ने
हाथ तो हरदम
मिलाते रहिये
हाथ मील जाएँ
कोई बात नहीं
दिल भी मील जाएँ
जरुरी तो नहीं

है शराफत का तकाजा
ऐ मेरे भोले सनम
चाह कर भी मैं तुझे
ना नहीं कह पाता हूँ
याद आते हैं मुझे
गुजरे हुए वो पल भी
जब मैं कहता था तुम बीन
मैं नहीं रह पाता हूँ
दूर रहकर भी कोई
पास बहुत लगता है
पास रह कर भी हो
वो पास जरुरी तो नहीं

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।