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रुपए का इतिहास, प्रचलन और पुराने नोट

जब से केन्द्र सरकार ने 500 और 1000 रूपये के नोटों को बंद करने का फैसला लिया है । हर चौक चौराहे से सोशल मिडिया तक बहस का बाजार गर्म है । कोई इसके पक्ष में अपनी दलील दे रहा है तो कोई इसके विरोध में अपनी बात रख रहा है । सबके अपने अपने तर्क और उस तर्क को बिल्कुल सही बनाने पर अपने विचार एक दूसरे पर थोपते लोग । इसी बीच कही ए टी एम पर लगती लम्बी कतारों का दृश्य, तो कही धीरे धीरे छोटी होती कतारे । इतना ही नहीं बीच बीच में बैंक के लाईन में किसी के मौत की पुष्ट तो अपुष्ट खबर , किन्तु इसी बीच एक कौतुहल है कि आखिर रूपए का इतिहास क्या है ? रूपये कैसे और कहाँ छापे जाते है ? जो रूपए प्रचलन में नहीं रहे उसका सरकार करेगी क्या ?
रूपया शब्द की उत्पत्ति संस्कृत रूप् या रूप्याह् शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है चांदी , रूपया शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग भारत में शेर साह सूरी ने 1540 से 1545 तक अपने शासन काल में किया था। शेर साह ने अपने शासन काल में जो रूपया नाम का मुद्रा चलाया था वह एक चांदी का सिक्का था । शेर साह के शासन काल में उपयोग किया जाने वाला रूपया , अंग्रेजों के शाषण काल में भी प्रचलन में रहा ।
कागज के रूपए के प्रचलन का यदि इतिहास देखे तो तो इसे सबसे पहले जारी करने वाले थे बैंक आॅफ हिंदुस्तान ( 1770 से 1832 ) , देश जनरल बैंक आॅफ बंगाल एंड बिहार ( 1773 – 1775) और द बंगाल बैंक ( 1784 – 1791 )
जब शुरूआत में बंगाल बैंक ने कागज के नोट छापने शुरू किए तो यह सिर्फ एक ही तरफ छपा था और इसपर सोने की एक मोहर लगी होती थी । बाद में इस नोट पर एक महिला की आकृति भी छापी गई जो व्यापार का मानवीयकरण का धोतक था । अब ये रूपए दोनो तरफ छपे होने लगे थे । इस पर तीन भाषा उर्दू, बांग्ला और हिंदी का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन 18 वी शताब्दी के बाद इसे जाली होने से बचाने के लिए और भी कई सारे चिन्ह जोड़े गए । लेकिन 1861 में पेपर करेंसी एक्ट के तहत 18 वी सदी के आखिरी में कानूनी तौर पर कागज के नोट का जन्म हुआ ।
1934 तक रूपए छापने की जिम्मेदारी सरकार की थी लेकिन उसके बाद इसकी जिम्मेदारी रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया को सौंपी गई और यही कारण है कि आज भी रूपए पर किसी प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर नहीं होता अपितु रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर होता है । भारत में कागज के रूपए देश में महाराष्ट्र के नासिक , कर्नाटक के मैसूर, पश्चिम बंगाल में सल्बोनी तथा मध्यप्रदेश के देवास में छापा जाता है । अगर सिक्के की बात करे तो यह कोलकाता, मुम्बई, हैदराबाद तथा नोएडा के टकसाल में ढाला जाता है ।
। रूपया छापने से पहले उसके पीछे सोना या चांदी रखा जाता था लेकिन 1971 में ब्रिटेन वुड व्यवस्था खत्म होने से गोल्ड स्टैंडर्ड का भी अंत हो गया ।
अब रूपए को फिएट करेंसी कहते है । फिएट करेंसी कानूनी तौर सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मुद्रा को कहते है । फिएट एक लैटिन भाषा का शब्द से जिसका अर्थ होता है हुक्म देना या आज्ञा देना । यही कारण है कि भारत के कागज के सारे रूपये जिसपर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर के हस्ताक्षर होते है यह यह भी लिखा होता है कि मैं धारक को अंकित मूल्य के रूपए अदा करने का वचन देता हूँ ।
15 जुलाई 2010 में भारतीय रूपया के लिए एक अधिकार प्रतीक चिन्ह भी चुनाव लिया गया , अमेरिकी डाॅलर,युरोप का यूरो ,जापानी येन और ब्रिटिश के पाउंड के बाद भारत का रूपया है जो किसी खास प्रतीक चिन्ह से जाना जाता है ।
एक सवाल ये भी कि आखिर रिजर्व बैक का गवर्नर कैसे और कितने रूपये छापने का वचन देता है ?तो रिजर्व बैंक महगाई दर , आर्थिक विकास दर और नोटो को बदलने की जरूरत का अनुमान लगाता है फिर सरकार से विचार विमर्श के बाद ही यह तय होता है कितना नोट छपेगा । यह भी संतुलन बनाना होता है कि नोट अधिक ना छप जाए इससे महंगाई के बढने का खतरा रहता है ।
अभी एक सवाल और भी हर किसी के दिमाग में कुलांचे मार रहा कि सरकार जो 500 और 1000 रूपए के नोट वापस ले रही है आखिर उसका होगा क्या ? रिजर्व बैक के एक आंकड़े के मुताबिक मार्च 2016 तक 15707 मिलियन 500 रू के नोट प्रचलन में थे और तकरीबन 6326 रू के 1000 रू के नोट प्रचलन में थे । केन्द्र सरकार ने विगत दिनों जब इन नोटों को बंद करने का फैसला लिया तो इसे बैंक में वापस लौटाकर नये नोट लेने वालों की कतार लग गई। लेकिन लाखो की संख्या में लौटाए गए 500 और 1000 रूपए के नोट तथा कटे फटे गंदे होकर नहीं चलने वाले नोट को भी रिजर्व बैंक रीसाइक्लिंग नहीं करता अपितु इसका श्रेडिंग करता है । पहले इन नोटो को जला दिया जाता था लेकिन पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए अब उसे पिघलाकर ईट का आकार दिया जाता फिर इसका अलग अलग तरह से इस्तेमाल किया जाता है । जैसे लैंड फिलिंग , सड़को के गड्ढे भरने तथा सड़क निर्माण में भी होता है तो छोटे छोटे आकार के इनसे बने ईटों का इस्तेमाल पेपर वेट में भी किया जाता है ।
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली ”

अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'

नाम :- अमित कुमार अम्बष्ट “आमिली” योग्यता – बी.एस. सी. (ऑनर्स) , एम . बी. ए. (सेल्स एंड मार्केटिंग) जन्म स्थान – हाजीपुर ( वैशाली ) , बिहार सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में निरंतर आलेख और कविताएँ प्रकाशित पत्रिका :- समाज कल्याण ( महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की मासिक पत्रिका), अट्टहास, वणिक टाईम्स, प्रणाम पर्यटन, सरस्वती सुमन, सिटीजन एक्सप्रेस, ककसाड पत्रिका , साहित्य कलश , मरूतृण साहित्यिक पत्रिका , मुक्तांकुर साहित्यिक पत्रिका, राष्ट्र किंकर पत्रिका, लोकतंत्र की बुनियाद , समर सलील , संज्ञान साहित्यिक पत्रिका,जय विजय मासिक बेव पत्रिका इत्यादि समाचार पत्र: - प्रभात खबर, आज , दैनिक जागरण, दैनिक सवेरा ( जलंधर), अजित समाचार ( जलंधर ) यशोभूमि ( मुम्बई) ,उत्तम हिंदु ( दिल्ली) , सलाम दुनिया ( कोलकाता ) , सन्मार्ग ( कोलकाता ) , समज्ञा ( कोलकाता ) , जनपथ समाचार ( सिल्लीगुडी), उत्तरांचलदीप ( देहरादून) वर्तमान अंकुर ( नोएडा) , ट्रू टाइम्स दैनिक ( दिल्ली ) ,राष्ट्र किंकर साप्ताहिक ( दिल्ली ) , हमारा पूर्वांचल साप्ताहिक ( दिल्ली) , शिखर विजय साप्ताहिक , ( सीकर , राजस्थान ), अदभुत इंडिया ( दिल्ली ), हमारा मेट्रो ( दिल्ली ), सौरभ दर्शन पाक्षिक ( भीलवाड़ा, राजस्थान) , लोक जंग दैनिक ( भोपाल ) , नव प्रदेश ( भोपाल ) , पब्लिक ईमोशन ( ) अनुगामिनी ( हाजीपुर, बिहार ), लिक्ष्वी की धरती ( हाजीपुर, बिहार ), नियुक्ति साप्ताहिक ( रांची / वैशाली , बिहार) इत्यादि प्रकाशित कृति :- 1 . खुशियों का ठोंगा ( काव्य संग्रह ) उदंतमरुतृण प्रकाशन , कोलकाता साझा काव्य संग्रह ............................... 1. शब्द गंगा (साझा ), के.बी.एस प्रकाशन , दिल्ली 2. 100 कदम (साझा ) , हिन्द युग्म , दिल्ली 3. काव्यांकुर 4 ( साझा ) शब्दांकुर प्रकाशन, दिल्ली 4. भाव क्षितिज ( साझा ) वातायन प्रकाशन, पटना 5.सहोदरी सोपान 3 ( साझा) , भाषा सहोदरी संस्था , दिल्ली 6 रजनीगंधा ( पता :- PACIFIC PARADISE FLAT NO - 3 A 219 BANIPARA BORAL KOLKATA 700154 MOB - 9831199413