गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरे लम्हों पे है कुछ तेरी उधारी बाकी
तभी सीने मे है सांसों की रवानी बाकी

चल उन्ही राहों से फिर से गुज़र के देखें तो
जहाँ रही थी तेरी मेरी कहानी बाकी

न छेड़ किस्सा वफ़ा का ये एक छलावा है
ख़ाक में रूह की कब मिलती नशानी बाकी

तूने ख़ंजर मेरे सीने में उतारा तो मग़र
ऐसी वहशत तेरी आँखों में थी नमी बाकी

शाम ने जब तेरी यादों की गिरह खोली तो
तर्क रिश्तों में भी थी खुशबू पुरानी बाकी

फिर भी उम्मीद ‘शरर’ हर्फ़े तसल्ली के लिए
शब ए फ़िराक शब ए वस्ल सुहानी बाकी।।

अल्का जैन ‘शरर’

अल्का जैन 'शरर'

नाम- अल्का जैन 'शरर' शिक्षा- LLB व्यवसाय- स्व व्यवसाय, कॉउंसलिंग, कंटेन्ट राइटिंग, सोशल वर्क, पता- गीता किरण सोसायटी, c-39, 3rd फ्लोर, जे. पी. रोड, वर्सोवा, अँधेरी (w) मुम्बई पिन- 400053