उपन्यास अंश

आजादी भाग –१५

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद असलम भाई ने कहना जारी रखा ,” जिस तरह से हर काम धंधे के कुछ उसूल होते हैं उसी तरह से गुनाह की दुनिया के भी कुछ उसूल होते हैं । जब हम शिक्षित होने के लिए स्कूल में दाखिला लेते हैं तब या तो पहली कक्षा में दाखिला मिलता है या फिर अगर हमारे पास कोई विशेष योग्यता का प्रमाणपत्र है तो उसके मुताबिक कक्षा में दाखिला मिलता है । वैसेही जुर्म की दुनिया के भी अपने नियम कायदे हैं । अपना पैमाना है लड़कों को परखने का । बहुत कम गुनहगार हैं जो पैदा होते ही हैं जुर्म की डिग्रियों के साथ ।  नहीं तो इस जुर्म की दुनिया में भी जुर्म की किताब का ककहरा पहली कक्षा से सीखना पड़ता है ।
और हमारे स्कूल में जुर्म के दुनिया की पहली कक्षा है भीख मांगना ! ”

कहने के बाद असलम एक पल केे लिए ठहरा था और उन चारों पर गहरी नजर डालते हुए आगे कहना शुरू किया ,”
हमारे गैंग में शामील होनेवाला हर लड़का जुर्म के दुनिया की पढाई यहीं से शुरू करता है । उसे क्या करना है कहाँ करना है और कैसे करना है ये सारी बातें हमारे आदमी इन बच्चों को बड़ी बारीकी से सीखा देते हैं । इन बच्चों में जो अपना काम मेहनत और इमानदारी से करते हैं हमारे आदमी उनकी तरक्की दूसरी कक्षा में कर देते हैं ।
दुसरी कक्षा का मतलब तो  तुम समझ ही रहे होंगे विजय !  दूसरी कक्षा का मतलब है उठाईगिरी करना !

जब भीख मांगते हुए बच्चे थोड़े होशियार हो जाते हैं थोडा चौकन्ना होना सीख लेते हैं तब हम उन्हें यह काम सौंपते हैं । कोई अपने सामान से जरा भी लापरवाह हुआ नहीं कि आसपास ही नजर रखने वाले  हमारे लडके अपना काम कर जाते हैं । अब तक इन लड़कों को खुद को बचाने की अकल आ चुकी होती है । पाकेट मारी और झपटमारी करना इसी श्रेणी में आते हैं ।
और ये जो तुम कर रहे हो ना विजय ! ये हमारी पाठशाला में तीसरी कक्षा के विद्यार्थी करते हैं । इसकी वजह साफ़ है । एक कामयाब चोरी के लिए अच्छी योजना की जरुरत पड़ती है । और अच्छी योजना वही बनाता है जिसे इस दुनिया का अच्छा अनुभव हो गया हो जैसे चोरी की जाने वाली वस्तु क्या हो ? और चोरी करने का समय क्या हो ?और फिर उसे ठिकाने लगाने की होशियारी भी जरुरी होती है । वैसे हमारे ग्रुप में सामान ठिकाने नहीं लगाने पड़ते । उसके लिए हमारे दूसरे लडके हैं । ” कहने के बाद असलम  ने  फिर एक गहरी नजर से विजय की तरफ देखा और बोला ,” अब हमें तुमसे यही शिकायत है विजय ! कि तुमने इस नए लडके को बीना सोचे समझे अपने साथ चोरी में शामिल कर लिया । अगर कहीं कुछ गड़बड़ हो जाती तो ? ”
” ईन  छोटी मोटी चोरियों के बाद अगली कक्षा में प्रवेश करनेवाले बच्चे डाका डालना शुरू करते हैं और बड़े बड़े काण्ड करते हैं जैसे बैंक डकैती या बन्दुक की नोक पर नगदी ले जानेवाली गाड़ी लुटना जैसे संगीन गुनाह ।
और इन्हीं गुनाहों को करते हुए अगर अनचाहे भी किसी के हाथ से गोली चल गयी और कोई शिकार हो गया तो उसकी हमारी दुनिया में तुरंत ही तरक्की हो जाती है । उसे इन छोटे मोटे गुनाहों से छुट्टी मिल जाती है । रातों रात हमारी दुनिया में वह खास हो जाता है और फिर शुरू हो जाता है उसका नया व्यवसाय । पैसे लेकर किसी की भी हत्या करना यानि सुपारी किल्लर या फिर तुम शार्पशूटर भी कह सकते हो ।
कई शार्पशूटर इतने होशियार होते हैं कि वो हमारी ही दुनिया के कुछ  दूसरे या तीसरे दर्जे के लड़कों को लेकर नशे का या सोने की तस्करी का काम भी शुरू कर देते हैं । लेकिन ये मेरा इलाका है यहाँ कोई कुछ भी अपनी मर्जी से  नहीं कर सकता ये तो तुम जानते ही हो । समझ गए न ? अब आगे से ध्यान रहे ऐसी गलती दुबारा माफ़ नहीं की जाएगी । ” कहते हुए असलम भाई ने अपनी जेब में हाथ डाला और पचास रुपये के नोटों की एक गड्डी विजय की तरफ उछाल दिया और बोला ” ये तुम्हारा आज के काम का दाम है । तीनों आपस में बाँट लो और हाँ ! बुढिया से कह देना माल वहीँ रहने दे । हमारा आदमी जब मौका मिलेगा उसे उठा लेगा । इस लडके को यहीं रहने दो और तुम जा सकते हो । ”
असलम भाई की बात सुनकर राहुल रोने लगा ” भाई ! मुझे जाने दो भाई ! मैं यहाँ नहीं रुकना चाहता ।मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है । विजय भाई ! मैं भी आपके साथ चलुंगा । मुझे यहाँ मत छोडो । मुझे डर लग रहा है । ” वह विजय के सामने गिडगिडा उठा । लेकिन विजय भला क्या कर सकता था ?
राहुल का हाथ छुड़ाकर वह सोहन और रईस के साथ असलम भाई को सलाम कर बाहर निकल गया ।
राहुल ने भी उनके साथ ही बाहर जाने की कोशिश की लेकिन इससे पहले कि वह अपने कदम दरवाजे की तरफ बढ़ाता असलम भाई की आवाज हॉल में गुंज उठी ” सुनो लडके ! अब तुम यहाँ से निकलने की बात अपने दिमाग से निकाल दो क्यूंकि असलम भाई का ये उसूल है यहाँ लोग अपनी मर्जी से सिर्फ इनकमिंग कर सकते हैं आउटगोइंग तो हमारी मर्जी से होता है । अब इसे अपना नसीब समझ लो या हमारी जबरदस्ती ! रहना तो अब तुम्हें यहीं पड़ेगा । हाँ ! एक बात मैं तुमसे कह सकता हूँ और वो ये कि हमारे यहाँ अपने लड़कों को तकलीफ नहीं दिया जाता । मेहनत करोगे ईमानदारी से तो तुम्हारी तरक्की होगी नहीं तो फिर भीख तो मांगना ही है । यहाँ से भागने की गलती भूल कर भी नहीं करना । तुम चाहे जहां रहो और चाहे जो करो हरदम मेरे आदमी तुम्हारे आसपास साये की तरह रहेंगे । ” कहते हुए असलम ने एक खास अंदाज में  ताली बजाया । सामने खड़े लोगों में से एक आदमी दौड़ता  हुआ सामने आकर खड़ा हो गया । उसे देखते हुए असलम बोला ” अब्दुल ! ले जाओ इस लडके को और इसे इसका काम समझाओ । ध्यान रहे यह लड़का थोडा तेज लग रहा है इसलिए ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है । ठीक है ? अब जाओ ! ”
असलम को झुक कर सलाम करने के बाद अब्दुल ने राहुल का हाथ पकड़ा और हॉल में ही अन्दर की तरफ बने एक दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
यह एक छोटा सा दरवाजा था जो उस हॉल के दुसरी तरफ एक कमरे में पहुंचता था । राहुल उस कमरे में पहुंचा । यह एक बहुत बड़ा कमरा था । कमरे में एक कोने में कुछ बेहद गंदे से दिख रहे मैले कुचैले कपडे पहने हुुुए कुछ लडके नीचे जमीन पर ही बैठे हुए थे । अब्दुल को देखते ही सभी लडके सहम से गए  । उनके भय को महसूस कर के राहुल स्वयं भी भयभीत था । वह भयभीत तो था लेकिन अब संयत हो कर कुछ सोच रहा था । उसके मन ने उसे समझाया था कि जो कुछ भी उसके साथ हो रहा है उन सबका जिम्मेदार वह स्वयं है । अब तो जो होगा देखा जायेगा । भुगतने के अलावा वह कर भी क्या सकता था ? अचानक उसके मन में फिर असलम भाई और पंडित रामसनेही के चेहरे घूम गए । उसे इन दोनों चेहरों में रत्ती भर भी फरक दिखाई नहीं पड़ रहा था । दिमाग पर काफी जोर देने पर भी उसे इस गुत्थी को सुलझाने का कोई उपाय सूझ नहीं रहा था । स्वयं को नियति के भरोसे छोड़कर राहुल अब्दुल के इशारे को समझ कर उन बच्चों के साथ जाकर बैठ गया ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।