गीत/नवगीत

गीत का उपहार दे दो।

माँगता तुमसे नहीं मैं,

विश्व की निधियाँ पुरानी/
क्या करूँगा प्यार में लेकर,
मैं तुमसे इक निशानी/
हो सके तो भावनाओं से
पिरोया हार दे दो,
गीत का उपहार दे दो।

जानता हूँ मैं कि माँगा,
प्यार में कुछ भी न जाता/
प्यार की परिपाटियों पर,
मन मेरा चलने न पाता/
सामने जब हो तो दाता,
कैसे याचक मन संभाले?
क्यों न अपने हार में ,
अनुपम नगीना इक सजा ले,
गीत में भरकर मुझे तुम,
चाहो तो संसार दे दो,
गीत का उपहार दे दो।

गीत ही तो हैं, जो मन से,
मन की भाषा बोलते हैं/
हो अधर खामोश पर ये,
भेद मन के खोलते हैं/
ये तुम्हारी अनकही ,
वाणी को स्वर दे जाएँगे/
जो छिपा रखी है तुमने,
प्रीत सब कह जाएँगे,
शब्द-सुमनों में सजाकर,
आज अपना प्यार दे दो,
गीत का उपहार दे दो।

भेंट मैं नश्वर जगत की,
आज लेकर क्या करूँगा?
गीत शाश्वत नीर जैसे,
आचमन इनसे करूँगा/
हम रहें कि ना रहें,
दुनिया को पथ दिखलाएँगे,
जो लिखोगे तुम तो,
स्मारक सभी हो जाएँगे!
सृष्टि के जीवन को अपनी
प्रीत का आधार दे दो,
गीत का उपहार दे दो।

शरद सुनेरी।